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आइये, करें जीवन-कल्प
२७ सामने निष्प्रभ हो चुका है । राम के सामने मार की तूती कम बजती है । जीवन की गंध तो दोनों ही हैं- मार भी, राम भी । मगर राम जीवन की सुगन्ध है और मार जीवन की दुर्गन्ध । जो दुर्बल है उस पर मार हावी है। दुर्बल की चेतना मार की कथरी में दुबकी रहती है । सबल योगी है और सबल होने की कला का नाम योग है ।
इसलिए यह कभी न समझना कि स्त्रियाँ खराब हैं, नरक का द्वार है; क्योंकि यह भूल सदियों सदियों से होती रही है । पुरुष ने अपनी निर्बलता को पहचाना नहीं; इसलिये उसने स्त्री को मोक्ष में बाधा माना । मनुष्य की इस भूल ने नारी-जाति पर बहुत बड़ा अपकार किया है । चाहे कोई ऋषि हो या शास्त्र, जिसने भी ऐसा कहने की हिम्मत की उसने मानवीय कमजोरी को नहीं पहचाना । नारी-जाति के लिए वह एक अक्षम्य अपराध है ।
मोक्ष या साधना के लिए न तो कभी पुरुष बाधक बनता है और न स्त्री । बाधक स्वयं की कमजोरी है, स्वयं की निर्बलता है और स्वयं की मार है । स्वयं की कमजोरी छिपाने के लिए यदि कोई व्यक्ति स्त्री के माथे पर दोष माँडने का दुस्साहस करता है, तो वह वास्तव में उसी यान में बम-विस्फोट करने की धमकी दे रहा है, जिसमें वह खुद चढ़ा-बैठा है ।
मेरे पास कई लोग जो आते हैं, ध्यान की कला सीखने के लिए, समाधि के आकाश में उड़ने के लिए; सब आप बीती सुनाते हैं । उनकी आत्म-कथा सुनो तो बड़ी हँसी आती है । कल ही एक सज्जन कह रहे थे कि मैंने मन्दिर जाना बन्द कर दिया । मैंने उनसे इसका कारण पूछा और उन्होंने सही-सही कारण बतला दिया । झूठ मुझे पसंद नहीं है यह बात नहीं, आदमी स्वयं झूठ बोलने की मेरे सामने आत्म-प्रवंचना कर नहीं पायेगा । गुरु के सामने भी अगर तथ्य छिपाओगे तो फिर सच्चाई का बयान कहाँ करोगे ? यहाँ तो किये का पछतावा होना ही चाहिये । मेरी दृष्टि में कन्फेसन (आत्म-स्वीकृति) का बड़ा मूल्य है ।
जानते हैं उस सज्जन ने क्या कहा- कहने लगे- मन्दिर जाता हूँ, तो जैसे ही किसी सुन्दर स्त्री को वहां देखता हूँ, मेरी आँखें मलिन हो जाती हैं। एकाग्रता धूमिल हो पड़ती है । मैंने सोचा यहाँ दृष्टि निर्मल नहीं रह पाती,
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