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आइये, करें जीवन-कल्प
२५ __ अगर चूक गये राम-से-आन्दोलित होने से, तो फँसेंगे मार के चंगल में । मार अगर प्रभावी हो गया, तो उसकी मिठास-चिपकी छुरी को चाटना पड़ेगा । छुरी पर लगी चासनी को खाना शक्कर के नाम पर जहर पीना है । यह अमृत के नाम पर विषपान है ।
मार तो नशे की गोली है । जिसने खायी, उसकी दशा बिल्कुल हीरोइन-पियक्कड़ की तरह होगी । अगर हीरोइन ली, तो जीवन की गोद में मोत का खतरा है; अगर न पी, तो तड़फेंगे, झुलसेंगे। यह तो प्याले में उभरता तूफान है ।
पहले समझें राम और मार को । 'मार' का अर्थ चाँटा लगाना नहीं है । मार राम की उल्टी शब्द-संयोजना है | राम की संधि तोड़ो । र, अ, म यह राम का अक्षर-संधि-विच्छेद है । इसे पलटो । अब अक्षर-रचना हुई म, अ, र । म से अ की संधि हुई तो मा बना । मा के साथ र की संयोजना ही मार है । यह बिल्कुल राम का उल्टा है । इन दो शब्दों को अगर ध्यान से समझ लिया, तो शास्त्रों की एक बड़ी खेप आपकी समझ में आ गयी ।
मार काम-वासना का देवता है । किसी को किसी के चंगुल में फँसा देना, यही मार का काम है | मार विपरीत का आकर्षण है । दो विपरीत धर्मों को एक सूत्र में बाँधना ही मार का कृतित्व है । वर्णसंकर इसका व्यक्तित्व है। पुरुष एक धर्म है । स्त्री दूसरा धर्म है । दोनों एक-दूसरे से विपरीत हैं । दो विपरीत तत्त्वों का रागात्मक सम्बन्धं ही मार है । वही संसार है । मार से प्रभावित होना स्वयं का संसार के प्रति लोकार्पण है । और राम से प्रभावित होना चित्त का परमात्मा के परम पथ पर संयोजन है |" __मार और राम दो है । यह एक स्थान में नहीं रह सकते । एक सिंहासन पर एक ही राजा की बैठक हो सकती है, दो की नहीं । जहाँ राम हैं, वहाँ मार नहीं । जहाँ मार है, वहाँ राम नहीं । भला राम और रावण कभी दोनो संग-संग रहे हैं ? राम और काम दोनों परस्पर शाश्वत वियोगी कवि हैं।
सम्बुद्ध लोगों की बात छोड़ो, आम आदमी तो मार के चंगुल में है । मार चार्वाक् दर्शन की बुनियाद है । आदमी चाहे जैन कुल में जन्मा
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