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ध्यान से सधती शान्ति, शक्ति, समाधि
१६१ है । अब यह हम पर निर्भर है कि हम उस बैटरी को कब चालू करें, कब उसका उपयोग करें और उसकी शक्तियों का लाभ लें । आज न केवल बाहरी खतरे बढ़े हैं, वरन् भीतरी खतरे भी बहुत बढ़-चढ़ गये हैं । सच्चाई तो यह है कि भीतर बाहर से भी ज्यादा खतरे बढ़े हैं । इसलिए आज समस्याओं की पहेलियों को सुलझाने के लिए ध्यान अचूक है । हमें अधिक समय न मिले, तो दर-रोज सुबह चौबीस मिनट ध्यान अवश्य करें । शत्रुपक्ष की बातें छोड़ने की चेष्टा करें और अपने घर में सजी चीजों का आनन्द लें । घर लौटने का रस पैदा होते ही मन-की-एकाग्रता सधेगी ।
रस जगना जरूरी है । 'रसो वै सः' वह रस रूप है । अपना घर तभी अच्छा लगेगा, जब इसके प्रति रसमयता जगेगी । रसमयता मन की एकाग्रता की नींव है । पिएँ हम रसमयता के प्याले-पर-प्याले, जिससे सफल हो सके ध्यान, पा सकें हम ध्यान के जरिये अपने घर को, लक्ष्य को, मंजिल को ।
स्वयं की एकरसता ही समाधि है । रसमयता का ही दूसरा नाम एकाग्रता है । मन की चंचलता रसमयता का अभाव है । जैसे पके हुए बाल एक लम्बे जीवन-की-दास्तान है, वैसे ही रस की परिपक्वता ध्यान की मंजी हुई कहानी है ।
___ व्यक्ति का ध्यान के बिना कोई अस्तित्व नहीं है । ध्यान एक व्यभिचारी का भी हो सकता है । वासना और वासना से सम्बन्धित बिन्दुओं पर वह एकाग्रचित्त रहता है । पर यह ध्यान अशुभ है । वह इसलिए, क्योंकि यह ध्यान उत्तेजना, विक्षोभ एवं आक्रोश को जन्म देता है । वह हिमालय-का-शिखर नहीं, अपितु सड़क-का-सांड है । ___जो स्वयं को स्वयं की नजरों में आत्म-तृप्त और आह्लाद-पूर्ण कर दे, वही ध्यान शुभ है । वह बाहरी संघर्ष से पलायन नहीं है । ध्यान शक्ति भी देता है और शान्ति भी । शक्ति पुरुषार्थ को प्रोत्साहन है और शान्ति उसकी मंजिल | सुबह के समय किया जाने वाला ध्यान शक्ति के द्वार पर दस्तक है और संध्या समय किया जाने वाला ध्यान शान्ति की ड्योढ़ी पर । सुबह तो रात भर सोयी-लेटी ऊर्जा का जागरण है । जबकि सन्ध्या दिन भर मेहनत-मजदूरी कर थकी-मांदी चेतना की पहचान है | सुबह अर्थात् सम्यक् बहाव और संध्या
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