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________________ समाधि के चरण : एकान्त, मौन और ध्यान बहुत पुरानी बात है । महावीर ने एक बार अपने प्रधान शिष्य गौतम को अपने पास बुलाया । महावीर ने गौतम से कहा- " मेरे प्रिय शिष्य ! मैं जानता हूं कि तुम मुझे बहुत प्यार करते हो । तुम्हें यदि त्रैलोक्य की सम्पति और महावीर के चरण में से चुनाव करना पड़े तो तुम निश्चित रूप से महावीर के चरणों की पूजा- अर्चना पहले लोगे । मैं यह नहीं कहूंगा कि तुम मुझसे प्यार न करो । मैं तो यह कहूंगा कि तुम जितना प्यार मुझसे करते हो, अपने आप से भी उतना ही प्यार करो । अपने आपको अंगीकार करना ही आस्तिकता है । " महावीर ने गौतम को समझाया कि 'मेरे प्यार के पीछे तुम अपने आपको मत झुठलाओ । मेरा प्यार तुम्हारे कल्याण में सहायक जरूर होगा । दुनिया के राग से हटने के लिए मेरा राग मददगार जरूर होगा, मगर एक बात जरूर ध्यान में रखना कि मेरा 'राग' भी आखिर है तो 'राग' ही । इसलिए जाओ, पहले अपनी जिन्दगी को 'जिन्दगी' बना लो। इससे पहले कि मृत्यु आकर तुम्हारा आलिंगन करे, तुम अपने जीवन की सम्पदा ढूंढ लो । जीवन के जुही के फूल सूख जाए, उससे पहले ही उनका सार्थक उपयोग कर डालो । आज तुम्हारे सामने जिनेश्वर खड़े हैं । उनके रहते भी यदि तुम अपना कल्याण नहीं कर सके तो तुम्हारे जैसा अभागा कोई और नहीं होगा ।' आम आदमी की यही आदत है जब जीवन्त महापुरुष, तीर्थकर, सद्पुरुष उसे मिलते हैं तो वह सोया रहता है और जब वे चले जाते हैं। तो उनकी मूर्तियां बनाकर उनकी पूजा करता है । आज तुम मुझसे कुछ पा नहीं सकते और जब मैं चला जाऊंगा तो मेरी मूर्तियां बनाकर उन्हें Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003892
Book TitleChale Man ke Par
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year1993
Total Pages258
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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