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सार्थक नहीं हो सकेंगे । संसार-मुक्ति और आत्म-उपलब्धि के लिए पहले, खोलें हृदय की दृष्टि । शुद्ध हृदय से जो अन्तरज्ञान में जीता है उसीका चारित्र सम्यक है । महावीर कहते हैं. चारित्र के बिना मोक्ष/निर्वाण नहीं होता, लेकिन वे यह भी स्पष्ट संकेत दे रहे हैं कि बिना ज्ञान के चारित्र निष्पन्न नहीं होता और ज्ञान तब तक अपनी सार्थकता को आत्मसात नहीं कर पायेगा जब तक जीवन के द्वार पर दर्शन की दस्तक नहीं होगी । दर्शन, ज्ञान और चारित्र की समवेत साधना का नाम ही मोक्ष मार्ग है ।
२२/ज्योति कलश छलके : ललितप्रभ
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