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________________ ज्ञान और आचरण के सम्बन्ध में वैज्ञानिकों के मार्ग को अपनाना पड़ेगा। वैज्ञानिकों के लिए सत्य वह नहीं है, जो कल जाना जायेगा । वहाँ वह सत्य है, जो आज जाना गया है । वहाँ आज का ज्ञान, आज का सत्य है और कल का ज्ञान, कल सत्य होगा । भले ही आज का सत्य कल झुठलाया जाये । पर आज तो वही सत्य है, जो आज जाना है, इसलिए वैज्ञानिकों की भाषा में यह कभी नहीं लिखा जाना चाहिये कि कल जो जाना गया वह मिथ्या था | कल तक जितनी खोज की गयी थी, उस आधार पर कल का सत्य था और आज जितनी खोज आगे बढ़ी है, उस आधार पर आज का सत्य है । अगर आज की खोज के आधार पर हम कल के सत्य को झुठला सकते हैं तो, आने वाले कल की खोज के आधार पर आज की खोज को भी झुठलाया जा सकता है | इसलिए सत्य की खोज का कोई अन्त नहीं है । आज जो जाना उसे आज का सत्य मानकर जीवन में स्वीकार करें और कल जो जानें, उसे कल स्वीकार करें | जीवन में ज्ञान और चारित्र की धारा, एक साथ बहनी चाहिये। आज का, महावीर का सूत्र उन्हीं लोगों को जगाने के लिये है जो, मात्र उपदेश और भाषण देते हैं, शास्त्रीय वचनों की दुहाई देते हैं, आचरण को दर किनार कर । महावीर का सूत्र है भणन्ता अकरेन्ताय, बन्धमोक्ख पदूण्णिणो वायविरियमेतेण, समासासेन्ति अप्पयं ।। जो बन्ध और मोक्ष के सिद्धान्तों के बारे में कहते तो बहुत कुछ हैं, किन्तु करते कुछ भी नहीं, वे ज्ञानवादी केवल वाणी की वीरता से ही अपने आपको आश्वासन देते हैं । ___ महावीर कहते हैं, 'जो बन्ध और मोक्ष के सिद्धान्तों के बारे में कहते तो बहुत हैं, किन्तु करते कुछ भी नहीं ।' इस बात को गहराई से समझें। दुनिया में अब तक संसार, संन्यास और समाधि- इन तीनों के बारे में इतने ग्रन्थ लिखे गये हैं, इतने भाषण दिये गये हैं कि यदि उन्हें जिन्दगी भर पढ़ते रहो, सुनते रहो तो भी अन्त नहीं आयेगा । आचरण शून्य उपदेशक इन सिद्धान्तों के बारे में चर्चा तो खूब कर लेगा, तर्क काफी दे देगा, पर संसार से नहीं छूट पायेगा | वह सबको समझायेगा संसार छोड़ो, क्रोध छोड़ो, मान छोड़ो, माया छोड़ो, कटु भावनाओं का त्याग करो । लेकिन स्वयं इन्हीं में डूबा रहेगा । मंच पर घंटों दहेज विरोधी १४२/ ज्योति कलश छलके : ललितप्रभ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003891
Book TitleJyoti Kalash Chalke
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLalitprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year1993
Total Pages170
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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