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रहा है, सिवाय दिखावे के और क्या है, चाहे धार्मिक कृत्य हो या गृहस्थमूलक-जो कुछ किया जा रहा है, इसलिए क्योंकि पड़ोसी ने भी वैसा किया है | पड़ोस के गाँव में जब मंदिर की प्राण-प्रतिष्ठा हुई थी तब हेलीकाप्टर से पुष्प वर्षा की गई थी-आज हमारे गाँव में प्रतिष्ठा है, हम भी इसलिए हेलीकाप्टर से फूल बरसाना चाहते हैं, क्योंकि ऐसा न करने पर हमारी नाक कटने का भय है । हमारे लिए यह बात गौण है कि पुत्री के विवाह में खर्च करने हेतु हमारा सामर्थ्य कितना है, खासबात यह हो जाती है कि पड़ोसी ने कितना व्यय किया था। पड़ोसी यानी हमारा दुश्मन । हम इसलिए पड़ोसी से ज्यादा खर्च करना चाहेंगे ताकि उसकी नजरें हमारे सामने झुकी रहें । पड़ोसी को झुकाने के लिए या उसे नीचा दिखाने के लिए किया जाने वाला फिजूल खर्च हमारी संकुचित मानसिकता का प्रदर्शन है ।
पता है, दहेज देने की परम्परा क्यों शुरू हुई ? किसी ने अपनी पुत्री को विवाह पर दो साड़ियाँ दी, उसके पड़ोसी ने उसे नीचा दिखाने के लिए तीन दी, और इसी प्रकार प्रतिस्पर्धा में यह क्रम बढ़ता गया । अभी कुछ दिन पूर्व एक महाशय अपनी पत्नी को साथ लेकर मेरे पास आए, कहने लगे, महाराज जी ! इसे समझाइये, मेरी पुत्री के ससुराल वाले कहते हैं कि हमें दहेज में कुछ नहीं चाहिए परन्तु ये अड़ी है कि मैं तो दहेज में ५१ साड़ियाँ ही दूंगी | मैंने अपनी नजरें उस बहन की ओर की तो उसने कहा, महाराज जी ! ये फिजूल में अपनी बात पर अड़े हैं । मेरे पड़ोसी की पुत्री का जब विवाह हुआ था तब उसने ४१ साड़ियाँ दी थीं, अगर मैंने दो चार और बढ़ाकर न दी तो मेरी प्रतिष्ठा पर चोट नहीं लगेगी ! ___ हम जो कुछ दे रहे हैं, लड़की को नहीं अपने अहंकार को दे रहे हैं। इसलिए दे रहे हैं कि अगर न दिया तो अहंकार पर चोट लगेगी । व्यक्ति प्रत्येक चोट को बर्दाश्त कर सकता है, परन्तु अपने अहंकार की चोट को नहीं ।
हम जो कुछ कर रहे हैं देखा देखी कर रहे हैं । जिन आकाक्षाओं के चलते हम दुःखी और विक्षिप्त हो रहे हैं, वे हमारी नहीं हैं, पड़ोसी के द्वारा पैदा की गई हैं, उधार हैं, बासी हैं । पहले तुम्हारे मन में, घर में कार लाने की आकांक्षा नहीं थी और न ही आवश्यकता | लेकिन आज आकांक्षा कर रहे हो, क्योंकि तुम्हारे इर्द-गिर्द दोनों ओर पड़ोसियों
१२८/ ज्योति कलश छलके : ललितप्रभ
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