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________________ 1 शारीरिक सम्पर्क के कारण एक दूसरे में स्थानान्तरित होते हैं । यदि आने वाली पीढ़ी में हम बिना किसी झिझक के यह संस्कार दें, कि व्यक्ति को अपने जीवन में एक ही जीवन साथी चुनना चाहिये । जीवन के नैतिक मूल्य मानसिक एवं स्वास्थ्य परक दृष्टि से भी यह बात स्वीकार्य है, और जीवन में दृढ़ता के साथ अमल में लाने जैसी है । श्रमण-धर्म में प्रवेश करने से पूर्व, महावीर काममुक्ति को अनिवार्य मान रहे हैं । स्त्री और पुरुष दोनों के विपरीतधर्मी हारमोन्स होते हैं, जो एक-दूजे को अपनी ओर खींचते रहते हैं | सड़क पर चलते हुए मंजनुओं को देखा ? वे अपने दोस्त की ओर नजर तक नहीं डालेंगे-, किन्तु उसकी ओर ताक-झांक करेंगे जिससे कोई जान-पहचान भी नहीं है । ये हारमोन्स प्रभावित कर रहे हैं । 1 • दुनिया में जितने बलात्कार होते हैं, वेश्याओं के कोठे चलते हैं या कॉलगर्ल्स के नाम पर जितनी युवतियाँ बर्बाद होती हैं, सब मनुष्य क कामान्धता का परिणाम है । यह सच है कि उल्लू को दिन में नहीं दिखता और कौए को रात में, पर यह भी सत्य है कि कामान्ध न दिन में देख पाता है न रात में । उसके लिए किसी के जीवन का अस्तित्व तक गौण हो जाता है, अपनी कामेच्छा की पूर्ति के सामने । पता नहीं इस संसार में लिनेवेल्ड जैसे कितने कामान्ध लोग हुए हैं, जिन्होंने अपनी जिंदगी में हवस पूर्ति के लिए सैकड़ों सैकड़ों महिलाओं के साथ बलात्कार कर, उनकी हत्या कर दी । मैंने सुना है, एक प्रेमी अपनी प्रेमिका को रिझाने के लिए कह रहा था, कहो तो मैं आसमान से सितारे तोड़कर तुम्हारी माँग में सजा दूँ, और तो और तुम्हारे लिए मैं जिंदगी की सभी खुशियाँ तुम्हारे कदमों में न्यौछावर कर सकता हूँ, पर तुम मुझसे विवाह कर लो । प्रेमिका जो इस तरह के वादे सुनने की आदि थी, वह समझ गयी यह प्यार से पहले इकरार है । उसने गम्भीर होते हुए कहा, 'मुझे न चाँद-सितारे चाहिये और न ही तुम्हारी खुशियाँ । अगर तुम सच में मुझे चाहते हो, तो अपनी माँ का कलेजा लाकर मुझे दो ।' युवक ने कहा, 'तुमने भी क्या मांगा । यह इच्छा तो मैं आज ही पूरी कर दूँगा ।' वह घर की ओर रवाना हो गया । मार्ग में छुरा खरीदा और घर पहुँचा । माँ पलंग पर सोई थी, छुरा घोंपते ही आह की चीख निकली । उसने वही थाली ली जिसमें माँ रोज खाना खिलाती थी, माँ १०८ / ज्योति कलश छलके : ललितप्रभ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003891
Book TitleJyoti Kalash Chalke
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLalitprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year1993
Total Pages170
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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