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________________ अंतरंग 'जागो मेरे पार्थ' एक शंखनाद है, आह्वान है भगवान श्री कृष्ण का, श्री चन्द्रप्रभ का । जहाँ गीता श्री कृष्ण का मानवता को एक महान् अवदान है, वहीं उसकी समय-सापेक्ष व्याख्या श्री चन्द्रप्रभ की पंथ-निरपेक्ष गुणात्मक पहल है। गीता का हर अध्याय अपने आप में शिथिल और सुषुप्त हो चुके आत्म-अर्जुन को उद्बोधन है। यह पाञ्चजन्य का वह उद्घोष है जिससे मनुष्य का सोया हुआ पुरुष और पुरुषार्थ जगता है और मनुष्य अपने जीवन-युद्ध की विजय के लिए कृतसंकल्प तथा प्रयत्नशील होता है। कर्मण्यता और कर्तृत्व-मुक्ति गीता के सन्देशों की आत्मा है। 'जागो मेरे पार्थ' वास्तव में जोधपुर में आयोजित गीता-प्रवचन-माला में आदरणीय श्री चन्द्रप्रभ जी द्वारा दिये गये हृदयस्पर्शी अठारह प्रवचनों का अवतरण है, संकलन है । इन प्रवचनों को पढ़-सुनकर ऐसा लगता है मानो एक महामनीषा ही नहीं वरन् भगवद्-स्वरूप में लीन किसी दिव्य चेतना की अन्तर्ध्वनि ही अभिव्यक्त हो रही है। श्री कृष्ण ने धरती को जितना कुछ दिया है, उसके लिए धरती उन्हें सदा याद करती रहेगी, पूजती रहेगी, उनके चरणों में अपना शीष, अपना सर्वस्व न्यौछावर करती रहेगी। श्री चन्द्रप्रभ जी का यह कहना कि श्री कृष्ण के द्वारा किसी की माखन की मटकी फोड़ देना उसे नुकसान पहुँचाना नहीं वरन् उसके पापों की मटकी को फोड़ना है, बड़ा सटीक है । लगता है श्री चन्द्रप्रभ जी ने खुले हृदय से गीता को आत्मसात् किया है और उनके उद्गार अपने आप में गीता जैसे रसभीने गीत बन चुके हैं। श्री कृष्ण को हए कई सदियाँ बीत चुकी हैं। श्री चन्द्रप्रभ जी तो कलियुग के कमल हैं, श्री कृष्ण सदा से घट-घट में व्याप्त रहे हैं । दूरियाँ समय की बाधक नहीं होती, मीरा हजारों वर्ष बाद भी अपने अन्तर-हृदय में श्री कृष्ण को साकार Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003890
Book TitleJago Mere Parth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year2002
Total Pages234
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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