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हमारे जीवन-विकास में चमत्कार साबित हो सकती है । इच्छा का शास्त्र इतना ही है कि जो प्राप्त है, उसमें तृप्ति नहीं है और जो प्राप्त नहीं है, उसे पाने की चाह है । कुछ और पाऊं, कहीं और जाऊं, किसी और को उपलब्ध करूं-इसी का नाम इच्छा है । श्रीकृष्ण यह कहना चाहते हैं कि तुम इच्छाओं के झमेले में मत पड़ो, क्योंकि इच्छाओं के मकड़जाल में प्रवेश करके कोई भी व्यक्ति अध्यात्म के मार्ग पर प्रस्थान ही नहीं कर सकता। कितना अच्छा होता आज भी कल्पवृक्ष होते। मनुष्य को इच्छाओं के दलदल से नहीं जूझना पड़ता । काश, मनुष्य को इच्छा का, आशा का कैंसर न होता। मनुष्य सुखी रहता, शान्त रहता, आत्मतृप्त रहता।
भगवान बुद्ध के जीवन से जुड़ी घटनाओं में से एक घटना है। कहते हैं एक युवक सौदागर के रूप में बैलगाड़ी पर माल को लादे हुए जा रहा था। सामने नदी आती है। वह बैलगाड़ी को एक तरफ खड़ी कर नहाने के लिए नदी में उतर जाता है । स्नान करते-करते उसके मन में कई कल्पनाएँ उभरती हैं, इच्छाएँ जगती हैं । वह सोचता है कि आज मेरे पास एक बैलगाड़ी है, पर कल को मेरा व्यापार फैलेगा। मेरे पास सख-समृद्धि होगी, मैं बहतेरी बैलगाड़ियों का मालिक होऊंगा। तब मेरे तीन-तीन रानियाँ होंगी। वह इसी तरह कल्पनाएँ कर रहा था, अपने मन में इन्द्रधनुष गढ़ रहा था, तब नदी से कुछ ही दूरी पर शिष्यों के साथ बैठे भगवान बुद्ध उस युवक के मन को पढ़ रहे थे।
बुद्ध एकाएक मुस्कुरा पड़े। बुद्ध के शिष्य ने कारण पूछा तो वे टाल गये, लेकिन शिष्यों के आग्रह पर उन्होंने कहा कि मझे हंसी इस बात पर आ गई कि नदी किनारे जो युवक नहा रहा है, वह नहाते-नहाते कल्पनाओं के कितने ही इन्द्रधनुष बुन रहा है, लेकिन वह यह नहीं जानता कि सात दिन बाद ही वह इस धरती से उठ जायेगा। आनन्द ! तुम जाओ और उसे समझाओ, उसे जानकारी दो । शायद कुछ बोध जगे। __आनन्द युवक के पास पहुँचता है और उसे जब बताता है, तो उसके सारे इन्द्रधनुष गायब हो जाते हैं। वह राग-रंग सब कुछ भूल जाता है, मन के सारे सपने एक ही क्षण में बिखर जाते हैं । वह रोने लगा और रोते-रोते ही नीचे गिर पड़ा। आनन्द ने उसे उठाया और बुद्ध के चरणों में ले गया। बुद्ध ने उसे संबोधि का मार्ग सुझाया । मृत्यु से घिरे व्यक्ति के लिए सात दिन तो बहुत होते हैं । जब सातवाँ दिन आया, तो मौत अपनी तैयारियाँ अंजाम देने लगी । वह आधा रास्ता
48 | जागो मेरे पार्थ
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