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हैं कि आत्मा की दृष्टि से पूरी तरह निश्चिंत रह । जो जीवित हैं वे इस महासंग्राम के बाद भी जीवित रहेंगे और जो बाद में मृत हैं, वे आज भी मृत हैं।
यदि किसी व्यक्ति के चिता से गुजर जाने पर कोई यह कहे कि इस आदमी का सब कुछ खत्म हो गया, तो मैं कहूंगा कि ऐसी बात वही व्यक्ति कहेगा, जिसकी आंखें खुली नहीं हैं । जिसकी आंखें खुली हैं, उसके लिए जीवन जीवन से पहले भी है और मृत्यु के बाद भी है । जिस शरीर को तुम गिरना समझते हो और गिरने के नाम पर जीवन का समापन समझते हो, वह शरीर तो ताश के पत्तों की तरह है। ताश के पत्तों का महल जब तक खड़ा है, तब तक खड़ा है और जैसे ही हवा का एक झोंका स्पर्श करेगा, वह धराशायी हो जायेगा । जैसे बच्चे ताश के पत्तों के महल के गिर जाने पर रोते हैं, चीखते-चिल्लाते हैं, उसी तरह बड़े लोग भी जीवन के महल के गिर जाने पर आँसू ढुलकाते हैं । आँसू वे लोग ही ढुलकाते हैं, जो जीवन को पूरी तरह समझ नहीं पाते ।
कृष्ण ने अर्जुन को ज्ञान-योग का संदेश दिया। कृष्ण का ज्ञान-योग यही है कि मृत्यु से गुजर जाने के बावजूद तुम अपने आपको मृत मत समझो, मृत्यु द्वारा द्वार पर दस्तक देने पर तुम शोकमग्न मत होओ। तुम्हारी ओर से सदा यह तैयारी रहे कि जब भी मृत्यु आए, तुम काया को सर्प की केंचुली की तरह निर्विकार-भाव से उतारकर सौंप देना और नई यात्रा पर निकल पड़ना । पृथ्वी-ग्रह से मुक्त हो जाना और किसी नये ग्रह की ओर छलांग लगा जाना । जब कृष्ण द्वारा अर्जुन को ज्ञान-योग का उपदेश दिया गया, तो अर्जुन ने भगवान से पूछा-आपने मुझे इतना महान् उपदेश दिया है । मैं इससे अभिभूत और प्रभावित हुआ; फिर आप मुझे कर्मयोग की प्रेरणा क्यों दे रहे हैं ? एक ओर आप मुझे योग का सन्देश देकर जीवात्मा के कल्याण का मार्ग प्रशस्त कर रहे हैं, वहीं आप मुझे कर्मयोग की प्रेरणा देकर पुनः इसी संसार में मोहित कर रहे हैं। श्रीकृष्ण ने कहा-मैं तुम्हें कर्मयोग की प्रेरणा इसलिये दे रहा हूँ, क्योंकि बगैर कर्म के कोई भी आदमी जीवित नहीं रह सकता । बगैर कर्मयोग के तुम अपने शरीर का भी निर्वाह नहीं कर सकते । ज्ञान का अर्थ केवल इतना ही नहीं है कि तुम बस्ती को छोड़कर जंगल में प्रवास करो । वरन् ज्ञानयोग का अभिप्राय यह है कि तुम ज्ञानपूर्वक अपने कर्मयोग को सम्पन्न करो। कर्म करना तुम्हारा अधिकार है, कर्तव्य है, मगर फल की इच्छा को दरकिनार किया जाना चाहिये । कर्त्तव्य-कर्मों
24 | जागो मेरे पार्थ
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