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कर्मयोग का आह्वान
कुरुक्षेत्र के युद्ध-प्रांगण में अर्जुन के कायर होते कदमों को थामने के लिए श्रीकृष्ण ने उन्हें ज्ञान-योग का संदेश प्रदान किया। श्रीकृष्ण अर्जुन को स्पष्ट कर चुके थे कि इन्द्रियों के विषय और उनके सुख क्षण-भंगुर, दुःख-बहुल और अनित्य हैं । यह शरीर आज नहीं तो कल मृत हो जाने वाला ही है । आत्मा जीवन की हर
आंख-मिचौली के बीच अविनाशी है, उपद्रष्टा है। जीवन केवल शरीर ही नहीं है। शरीर तो अन्ततः माटी है । जिनका ध्यान अगर माटी पर ही केन्द्रित रहा, वे माटी में ज्योतिर्मान रहने वाली लौ को गौण कर जायेंगे। शरीर माटी है, लेकिन इस माटी में जलने वाली ज्योति माटी नहीं है । ध्यान अगर माटी पर केन्द्रित हो गया, तो ज्योति की मूल्यवत्ता व्यर्थ हो जायेगी।
जिनके लिए जीवन मृत्यु के नाम पर समाप्त हो जाता है, वे लोग चूक कर रहे हैं। उनके लिए जीवन कुछ तत्त्वों का संयोग है और मृत्यु उन तत्त्वों का बिखराव है । जीवन के अन्तर्गत रहने वाली आत्मा हर पर्याय के परिवर्तन के बावजूद अपरिवर्तनशील रहती है । शरीरों में परिवर्तन हो सकता है, स्थान और समय में परिवर्तन हो सकता है, लेकिन आत्मा हमेशा अपरिवर्तनशील रहती है। वह तो चिरनवीन है, नित्यनूतन यात्री की तरह है। उसमें परिवर्तन नहीं होता। चूंकि उसमें परिवर्तन नहीं होता, इसीलिए श्रीकृष्ण अर्जुन को यह उद्बोधन देते
कर्मयोग का आह्वान | 23
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