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क्षत्रिय, वैश्य या शूद्र बनाया हो, लेकिन हम अपने हाथों से राम को बनाएँ, हम अपने अन्तःकरण में कृष्ण को जन्म दें, ताकि अगर किसी के हाथ द्रोपदी की तरफ़ बढ़े, तो हम उसकी अस्मिता बचा सकें, कोई समाज अगर चंदनबाला को सरेआम बाज़ार में बेच डाले, तो महावीर बनकर हम उस चंदनबाला की सुरक्षा कर सकें। कृष्ण का कर्मयोग हम सब लोगों को जीवन के युद्ध में सन्नद्ध होने की प्रेरणा देता है, इसलिए कर्मयोग गीता का सार है, गीता की भावना है, गीता के मन्दिर में बैठा हुआ देवता है।
गीता दूसरी प्रेरणा हमें खास तौर पर यह देती है कि तुम युद्ध करो । जीवन के युद्ध में गुजर जाओ, पर अपने अहंकार का त्याग करके । माना अंधकार चारों दिशाओं से हमें घेर रहा है, दसों दिशाएँ अंधेरे को जन्म दे रही हैं, मगर सूरज तो केवल पूर्व दिशा में ही उगता है । अर्जुन, याद रख ! अंधकार तुम्हें दसों दिशाओं से घेरेगा, सौ दिशाओं से आक्रमण करेगा, मगर यह तभी हावी होगा, जब तक पूर्व से सूरज नहीं उग जाता । अंधकार कितना ही सघन, सबल और प्रबल क्यों न हो, उसका अस्तित्व तभी तक है, जब तक सूरज आसमान में नहीं उगता। ये द्रोण, ये भीष्म, ये दुःशासन, दुर्योधन, शकुनि ये सारे लोग अंधकार का साथ दे रहे हैं । ये अंधकार बनकर तुम पर मंडरायेंगे, लेकिन तुम सूरज बनो, सन्नद्ध हो जाओ, केवल अपने अहंकार, अंधकार का त्याग करके । ये जो मृत लोग खड़े हैं, इनको पूरी तरह मृत कर डालो। अपने अहम् का त्याग कर दो, अपने सारे कर्तव्य-कर्मों को परमात्मा के श्रीचरणों में समर्पित कर दो। 'मैं' गिर जाये, 'वह' आ जाये । अहं अहँ हो जाये।
वेद कहते हैं-तत्त्वमसि-वह तू ही है । 'मैं' गिर जाना चाहिये, वह हमारे साथ आत्मसात हो जाना चाहिये। जैसा तु करवायेगा, वैसा हम कर लेंगे। हमारा जीवन तो नदिया की धार पर बहता हुआ एक तिनका है । हे प्रभु, जिधर तू ले जाना चाहे, जिधर तेरी हवाएँ हमें बहाकर ले जाना चाहें, हम जाने को तैयार हैं। हमने अपने आपको समर्पित किया है । हे अनंत सत्ता ! तूने मेरा सृजन किया
और अब तू अपने सृजन का जैसा उपयोग करना चाहे, वैसा उपयोग कर । मेरा मुझमें कुछ नहीं है, तो वहीं पर व्यक्ति परमात्मा की ओर उठना शुरू हो जाता है । बूंद का मिटना ही सागर में समा जाना है ।
एक अहम् का संबंध तुम्हारे अपने साथ है और दूसरे अहम् का संबंध
214 | जागो मेरे पार्थ
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