________________
मानने से बहुत ऊपर है । श्रद्धा नकली फूलों के प्रति नहीं होगी, वह तो असली फूलों से ही जन्म लेगी, उन्हीं से अंकुरित होगी। श्रद्धा बिल्कुल ऐसे है कि जैसे माल की नकद-बिक्री हो और विश्वास तथा मानना उधार बिक्री के तुल्य है। उधार में तो सारी दनिया लेने को तैयार है, पर मामला अगर नकद का हो, तो आदमी सोचेगा। श्रद्धा 'उधार खाता नहीं है, यह तो 'नकद' है। नकद माल देती है और नकद दाम ही स्वीकार करती है। मानना तो बासी माल है, जिसे तामसी प्रकृति के लोग ही खाते हैं। श्रद्धा को सही तौर पर वे ही लोग जी पाते हैं, जो सात्विक प्रकृति के होते हैं.।
किसी के प्रति कुछ कहने भर से श्रद्धा जन्म नहीं लेती । श्रद्धा तो अकारण घटित होती है। आप अगर किसी रास्ते से गुजर रहे हैं और अचानक किसी को देखा, तो न जाने भीतर क्या प्रतिक्रिया हुई और आप दिल दे बैठे, प्रेम हो गया। प्रेम कोई करने से नहीं होता, यह तो बस हो जाता है। श्रद्धा भी ऐसे ही किसी के प्रति करने से जन्म नहीं लेती । श्रद्धा का जन्म अकारण होता है । ठीक ऐसे ही कि जैसे यह माटी बादलों को निमंत्रण देती है और माटी की सौंधी महक आसमान की तरफ ऊपर उठती है। अचानक किसी बादल का उधर से गुजरना होता है
और बादल रिमझिम-रिमझिम बरसने लग जाता है। ऐसे ही श्रद्धा का जन्म होता है, अचानक, आकस्मिक । इसीलिए श्रद्धा से बड़ा और कोई चमत्कार नहीं है। श्रद्धा का जीवन में जन्म होना ही जीवन का सबसे बड़ा चमत्कार है।
जहाँ श्रद्धा होती है, वहाँ अपने आप विकास होता चला जाता है । श्रद्धा में स्वयं गुरु रहता है, परमात्मा का वास होता है । श्रद्धा में ही तो गुरु की आँख होती है। गुरु को अगर पहचानना है, तो श्रद्धा की आँख से ही पहचान पाओगे। अगर श्रद्धा में संदेह की किरकिरी समा जाये, तो जो विकास हो रहा था, वह अवरुद्ध हो जायेगा और आदमी ने जहाँ से यात्रा आरम्भ की थी, वह वहीं पर आकर अटक जायेगा। ऐसा मत समझना कि किसी गुरु ने शक्तिपात किया और श्रद्धा जन्म गई । ये श्रद्धाएँ बासी होती हैं, उन शक्तिपातों का प्रभाव दो-तीन दिन रहता है
और फिर ठंडा, लेकिन श्रद्धा अगर भीतर में एक बार जाग्रत हो गई, तो यह विकसित होती जायेगी, आदमी का ऊर्ध्वारोहण करवाती रहेगी। बस, श्रद्धा जन्मने भर की देर है।
कहते हैं कि एक बार जीसस किसी के घर मेहमान बने । तभी एक महिला
श्रद्धा स्वयं एक मार्ग| 203
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org