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को जान रहे हो। अपने को जिसने जाना वह एक चींटी में भी अपनी-सी सत्ता स्वीकार करेगा । एक चींटी पर पाँव रखना भी उसके लिए अपने पर पाँव रखने के समान होगा।
सारे जगत का ही एक अन्तर्सम्बन्ध है । जैसे मकड़ी के जाल के एक तार को भी हिलाओ, तो सारा जाल हिल जाता है; अगर तालाब में एक कंकरी फैंको, तो सारा तालाब आंदोलित हो जाता है । ऐसे ही अगर किसी एक को पीड़ा दे रहे हो, तो सारे संसार को पीड़ा दे रहे हो, किसी एक पर करुणा बरसा रहे हो, तो सारे संसार पर करुणा कर रहे हो। अहिंसा का जन्म तभी होता है, जब व्यक्ति अपने आपको जानता है, अन्यथा अहिंसा केवल व्यावहारिक अहिंसा बन जायेगी, निश्चयमूलक अहिंसा नहीं बन पायेगी । तब तुम्हारी अहिंसा का रूप कुछ अलग ही होगा।
जीसस कहते हैं कि यदि कोई व्यक्ति तुम्हारे एक गाल पर चांटा लगाये, तो तुम दूसरा गाल उसके आगे कर दो। जीसस ने ऐसा कहा, लेकिन देखा यह जाता है कि अगर सामने वाला व्यक्ति दूसरे गाल पर भी चांटा लगा दे, तो तीसरा चांटा उसी गाल पर पड़ जाता है । तब वह सफ़ाई देगा कि जीसस ने तो यह कहा कि कोई एक गाल पर चांटा लगाये, तो दूसरा गाल आगे कर देना पर गाल तो दो ही होते हैं, तीसरा नहीं होता, इसलिए तीसरा गाल तो सामने वाले का ही होता है। अगर अपने आपको जाना है, स्वयं को ईश्वर के पुत्र के रूप में पहचाना है, तो आदमी, गाल पर चांटा लगवाना तो नगण्य बात है, क्रॉस पर भी लटक जायेगा
और यह कहेगा कि प्रभु, माफ़ कर इन्हें । ये लोग नहीं जानते कि ये क्या कर रहे हैं। वह करुणा बहुत गहरी होगी। यह करुणा किसी प्रतिज्ञा लेने से नहीं पैदा होने वाली और न प्रवचनों में जाकर बैठने से पैदा होगी। इसका जन्म तो तभी होता है, जब व्यक्ति की अपने आपके प्रति आस्था होती है, जब व्यक्ति अपने आपको जानता है। _मैं आपको अपने आप पर विश्वास दिलाना चाहता हूँ, क्योंकि आदमी का अपने आपसे विश्वास उठ गया है । परमात्मा का क्रम तो दूसरा है, पहला विश्वास तो अपने आप पर ही चाहिये । शास्त्र कहते हैं कि आस्तिक वह है जो भगवान में आस्था रखता है और नास्तिक वह है, जिसने परमात्मा को अस्वीकार कर दिया है। यह भाषा बहुत पुरानी हो गई है । वस्तुतः जिसका अपने आप पर विश्वास
178 | जागो मेरे पार्थ
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