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________________ तमोगुण है । कापोत और तेजोलेश्या रजोगुण है । पद्मलेश्या, और शुक्ललेश्या सतोगुण है । निर्वाण लेश्यातीत होने में निहित है । मोक्ष गुणातीत होने से घटित होता है । तमोगुण ज्ञान को आवृत कर मनुष्य को प्रमाद में लगाता है, रजोगुण कर्म में और सत्त्वगुण से सुख का सवेरा होता है, जीवन प्रकाशमय होता है। गुणातीत अवस्था मोक्ष की आधारशिला है । मोक्ष सबका ध्येय हो, और इसके लिए सतोगुण को, सत्त्व प्रकृति को प्राथमिकता देनी चाहिये। सचेतनता और विवेकशक्ति में सत्वगुण निवास करता है। रजोगुण विषयभोगों की लालसा को बढ़ावा देता है। तमोगुण तो जीवन का तमस है, इन्द्रियों में मूर्छा है, कर्तव्य-कर्मों में अप्रवृत्ति है, प्रमाद है । सतोगुणी स्वर्ग को जीता है, रजोगुणी मानवीय सुख-दुःख की संवेदना करता है, तमोगुणी पशुता और नारकीय आग को झेलता है। इन तीनों गुणों का अतिक्रमण ही परमानन्द की प्राप्ति है । साक्षित्व ही वह मार्ग है, जो गुणातीत होने का द्वार खोलता है। वह, गीता की भाषा में-न द्वेष्टि संप्रवृत्तानि न निवृत्तानि कांक्षति-न तो प्रवृत्त होने पर उनसे द्वेष करता है और न निवृत्त होने पर उनकी आकांक्षा करता है । साक्षी, साक्षी रहता है । वह जानता है कि गुण ही गुण में प्रवृत्त होते हैं । वह तो साक्षी रहता है, आत्मभाव में स्थित, गुणातीत, स्थितप्रज्ञ । आज इतना ही निवेदन कर रहा हूँ । नमस्कार ! 174 | जागो मेरे पार्थ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003890
Book TitleJago Mere Parth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year2002
Total Pages234
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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