________________
किन्तु अंधा प्रवाह है । सतोगुण विवेक है, रजोगुण विचार है और तमोगुण वृत्ति । तीनों गुणों को समझने के लिए विवेक, विचार और वृत्ति तीनों को पर्याय ही समझा जाना चाहिये।
जो व्यक्ति सतोगुण के मार्ग से जीते हैं, वे विवेकमान हैं; जो रजोगुण के मार्ग से आगे बढ़ रहे हैं, वे बुद्धिमान या विचारवान हैं । तमोगुण तो चेतना की सबसे निकृष्टतम दशा है । इस मार्ग से वे ही व्यक्ति बढ़ने की सोचते हैं, जो मूढ़, मूर्ख और अज्ञानी होते हैं । सतोगुण से सुख मिलता है । यह ज्ञान को जन्म देता है । रजोगुण से कर्म करने की प्रेरणा मिलती है । यह मनुष्य को सुख देता है। तमोगुण से मनुष्य के भीतर प्रमाद और मूर्छा पैदा होती है, जिससे मनुष्य में अज्ञान उत्पन्न होता है, वह अज्ञान जो मनुष्य के संपूर्ण विवेक, संपूर्ण चेतना और संपूर्ण आत्मबोध को ढंक डालता है; ठीक ऐसे ही कि जैसे एक पात्र किसी जलते हुए दीये पर रख दिया जाये । जैसे पात्र दीये की संपूर्ण रोशनी को एक दायरे में कैद कर डालता है, ऐसे ही हमारे भीतर की आत्मा की रोशनी, सम्पूर्ण गुणातीत शक्ति और ऊर्जा, उसका नूर ढंक जाता है, आवृत हो जाता है; मनुष्य के अपने ही तमोगुण के कारण, अपनी ही वृत्तियों के कारण, अपने ही भीतर के अन्धत्व के कारण।
__ मनुष्य दिन-रात अपनी अंधी-वृत्तियों में उलझा हुआ रहता है । कभी क्रोध की वृत्ति, कभी काम की वृत्ति और कभी अहंकार की वृत्ति । हर वक्त सोते-जागते व्यक्ति के साथ वृत्तियाँ जारी रहती हैं । वृत्तियाँ यानी चित्त की तरंग, चित्त के ज्वार-भाटे, चित्त के उतार-चढ़ाव । जब भी अपने मन को पड़तालो, कभी शांत, सौम्य और निर्मल नहीं पाओगे। मनुष्य भड़क रहा है, जैसे कि भीतर कोई ज्वालामुखी भड़क रहा है। महावीर कहते हैं कि मनुष्य को सोने और चांदी के कैलाश जैसे असंख्य पर्वत भी मिल जायें, तब भी मनुष्य के मन को तृप्ति नहीं मिलने वाली । मन की वृत्तियाँ आदमी को सुबह से शाम तक भगा रही हैं, भटका रही हैं। यह तामसिकता है । वृत्तियों के कारण ही आदमी संबंधों की स्थापना करता है । इसी कारण पति और पत्नी का संबंध है, परिवार और समाज का संबंध है । वृत्ति से निवृत्ति हो जाये, तो जीवन में संन्यास घटित हो जाए।
सुना है मैंने कि एक आदमी की बीवी मर गई । वह खूब रोने लगा, पूरे मोहल्ले भर को चिल्ला-चिल्लाकर इकट्ठा करने लगा। लोगों की भीड़ जमा
168 | जागो मेरे पार्थ
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org