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ही जान सकोगे कि जीवन क्या है ? तभी यह जान सकोगे कि जीवन का प्रक्षालन कैसे होता है ?
मेरे लिए कभी किसी धर्म का विरोध नहीं रहता। मैं जितने प्रेम से वेद पढ़ता हूँ, उतने ही प्रेम से आगम-पिटक, कुरान, बाइबल को भी पढ़ लूंगा । अच्छी बातें हर धर्मशास्त्र में लिखी हैं, हर ग्रन्थ में लिखी हैं । अच्छे लोग, अच्छे विचारक
और संयमी व्यक्ति हर धर्म में हैं । तुम्हारी आँखों में ही कुछ गिरा हुआ है, इसलिए तुम्हें सामने का दृश्य साफ़ दिखाई नहीं देता। अपने चेहरे पर काला चश्मा लगाओगे, तो सामने की सफ़ेद दीवार काली दिखाई देगी ही। दीवारों को बदलने की चेष्टा मत करो.अपने ही चश्मों को बदलने की चेष्टा करो, जिन चश्मों के कारण सामने वाले के दस रूप दिखाई देते हैं। __मैं जैन भी हूँ, हिन्दू भी हूँ, बौद्ध भी हूँ, मुसलमान भी हूँ, ईसाई भी हूँ, क्योंकि मैंने हर धर्म से अच्छी बातों को सीखा है, इसलिए हर धर्म के मौलवी, पादरी, संत-ज्ञानी हर एक से मिल लेता हूँ, सब मुझसे मिल लेते हैं।
गीता का सार यह है कि व्यक्ति स्थितप्रज्ञ, अनासक्त और जीवनमुक्त बने । गीता का यह संदेश क्या जैनों को अपनाने की मनाही है? क्या यह प्रेरणा महावीर और बुद्ध ने नहीं दी है ? क्या यह शिक्षा औरों के लिए प्रेरणा नहीं बन सकती? जैन धर्म कहता है कि मनुष्य वीतराग, वीतद्वेष और वीतमोह बने । क्या यह धर्म केवल जैनों के लिए ही है, औरों के लिए नहीं है ? ज़रा मुझे बताएं कि वीतराग, वीतद्वेष और वीतमोह तथा स्थितप्रज्ञता, अनासक्ति, जीवनमुक्ति में कहाँ-कौनसा विरोध है ? बौद्ध धर्म कहता है कि मनुष्य शीलवान, प्रज्ञावान और समाधिवान बने । क्या ये शील, समाधि और प्रज्ञा–केवल बौद्धों के लिए ही हैं, औरों के लिए नहीं हैं ? प्रेम और करुणा से अभिभूत होकर औरों की सेवा करना क्या यह केवल ईसाइयों के लिए ही नसीहत है ? यदि मैं सेवा के लिए आगे आऊं, तो ज़रूरी नहीं कि मेरे शरीर पर एक पादरी का चोगा हो ही । हर मनुष्य को सेवा करने का पूरा-पूरा हक़ है, फिर तुम चाहे जिस धर्म के क्यों न हो।
जात-पाँत को भुलाकर सामाजिक समता को जीने की बात इस्लाम ने कही है। यही बात महावीर, बुद्ध, गांधी और रामकृष्ण परमहंस ने भी कही है। सारे घाट अलग-अलग ही क्यों न हों, वे सारे गंगा में ही उतारेंगे। धर्म के सारसूत्रों
मन में,मन के पार | 141
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