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चुकी है, गीता तो हर रोज़ हर पल जन्म लेती है, तब-तब जन्म लेती है, जब-जब भीतर में अर्जुन का आविष्कार होता है।
___ गीता का मार्ग धारा का मार्ग नहीं है । यह तो राधा का मार्ग है । धारा तो बहती है। धारा के साथ बहना, यह कोई हमारे भुजाओं का सम्मान नहीं है । गीता का मार्ग तो संघर्ष का मार्ग है और संघर्ष का मार्ग राधा होने से होगा। राधा के मायने धारा का विपरीत रूप होना ही है । धारा के साथ बहना समर्पण है और धारा का राधा हो जाना गंगासागर से गंगोत्री की यात्रा है। गंगोत्री से गंगासागर जाना हो, तो हर कोई बिना पतवार के पहँच ही जायेगा, पर अगर गंगासागर से गंगोत्री की यात्रा करनी हो, तो बड़ी मुश्किल है। इसीलिए मैंने कहा गीता गौरीशंकर है, गीता शिखर है, स्वर्ण-शिखर । शिखर पर चढ़ना जैसे दुरूह होता है, वैसी दुरूहता गीता को पचाने में भी है। मेरी पुरजोर कोशिश होगी कि गीता आपको पच जाये, आप चाहे किसी भी धर्म के अनुयायी क्यों न हों, मेरे लिए गीता में कोई विरोधाभास नहीं है । गीता हर वर्ग के लिए है, हर ‘आश्रम' के लिए है । गृहस्थ और संन्यास दोनों ही मार्ग इससे प्रशस्त हुए हैं।
गीता को अगर आंतरिक जीवन से जोड़ दो, तो गीता पूरी तरह महावीर की वाणी बन जायेगी और महावीर की संपूर्ण वाणी को अगर बाह्य जीवन के साथ जोड़ दो तो वह भागवत गीता बन जायेगी। विरोधाभास तो हमारी समझ में है। हमने छिलकों को बहुत महत्व दे दिया, इसलिए महावीर की धारा अलग लगती है और राम-कृष्ण, जीसस और सुकरात की धाराएँ जुदा जान पड़ती हैं। आपने अब तक कुएं, नहरें और नदियां ही देखी हैं, पर मैंने तो गंगासागर को भी निहारा है, उसका स्वाद चखा है । वही गंगासागर जिसमें सारी नदियाँ, सारी नहरें आकर समाविष्ट हो जाती हैं । वह गंगासागर कोई और नहीं, यह गीता है, जिसमें मुझे बहुत सारे सत्यों का संगान, उनका कलरव सुनाई पड़ता है । चाहे वे वेद या उपनिषद की ऋचाएँ हों, चाहे आगम के सूत्र हों या बुद्ध के पिटकों की गाथाएँ, सभी कमोबेश में यहाँ मिल जायेंगे। अपने हृदय के द्वार खोलिए; अपने तर्क वाले दिमाग़ को वहीं छोड़ आइये, जहाँ आपने अपनी चरण-पादुकाएँ खोली हैं, ताकि गीता की ये रश्मियाँ अपनी दस्तक वहाँ दे सकें, रोशनी फैला सकें।
गीता का शुभारम्भ बड़े मंगल शब्दों से हुआ है। गीता का पहला चरण है-धर्मक्षेत्रे कुरुक्षेत्रे । कितनी सटीक, कितनी सुन्दर बात है । कुरुक्षेत्र ही धर्मक्षेत्र
6 | जागो मेरे पार्थ
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