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________________ धरती पर मनुष्य के अभ्युत्था के लिए कई पगडंडियाँ हैं, कई रास्ते हैं, राजमार्ग हैं। मनुष्य के अभ्युत्थान के लिए ही धरती पर धर्मों का जन्म हुआ है । मनुष्य का जन्म धर्म के लिए नहीं हुआ, वरन् धर्मों का जन्म मनुष्यों के लिए हुआ है। जब- जब भी समय ने अपनी करवट बदली, धर्म के नये रूप, नये मार्ग, नए मापदंड स्थापित होते गये । इस समय दुनिया में करीब तीन सौ साठ धर्म जीवित हैं । मन में, मन के पार धर्मों की विविधताएँ हैं, उनके अपने-अपने मार्ग हैं। धर्म के मार्ग चाहे जितने हों, लेकिन कोई भी धर्म ऐसा नहीं है, जिसके सारभूत सिद्धान्तों के साथ किसी दूसरे धर्म का विरोध हो । कहीं भी विरोध या विरोधाभास दिखाई देता है, तो वह धर्म के सिद्धान्तों में नहीं, वरन् धर्म के नाम पर चलने वाली सांप्रदायिकता, कट्टरता और राजनीति के कारण है । हिन्दू धर्म के सारसूत्र इस्लाम धर्म के अनुयायी को अपनाने का पूरी तरह हक़ है और इस्लाम के सारसूत्रों को एक हिन्दू को अपनाने में कोई ऐतराज़ नहीं है । भेद केवल शिल्प में है, भेद केवल दीयों में है। सारे दीयों में ज्योति तो एक ही है । 138 | जागो मेरे पार्थ Jain Education International अपने अपने भेष की, सब कोइ राखे टेक । रज्जब निसाना एक है, तीरंदाज़ अनेक ॥ For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003890
Book TitleJago Mere Parth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year2002
Total Pages234
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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