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हनुमान की पूजा करो । तभी तो राम से ज्यादा हनुमान के मन्दिर बनाये जाते हैं । अगर हनुमान की छाती को चीरकर देखा जाये, तो राम और सीता मिलेंगे। काश, कोई ऐसी ही चुनौती अर्जुन के सामने रखता कि हे अर्जुन ! ज़रा तुम भी दिखाओ कि तुम्हारे भीतर कौन है ? अर्जुन छाती चीर ही देता और दिखा देता अपने में कृष्ण को, हनुमान की तरह राम को । अर्जुन कृष्ण का पार्थ है । हनुमान की तरह अर्जुन की भी पूजा हो । अब तक महावीर की पूजा हुई है । मैं चाहता हूँ कि महावीर के मन्दिरों में गौतम स्वामी और चंदनबाला की मूर्तियाँ भी बैठाई जायें कृष्ण के मन्दिरों में जब तुम मीरा को प्रतिष्ठित कर सकते हो, राधा की प्रतिमा लगा सकते हो, तो अर्जुन को वहाँ स्थान क्यों नहीं दिया जा सकता ?
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कन्हैया ने जितना प्रेम राधा से किया होगा, गोपबालाओं और अहीर की छोरियों से किया होगा, उतना ही प्रेम अर्जुन से भी किया। कितने बड़े ताज्जुब की बात है कि उस भगवत स्वरूप ने दुष्टों के संहार के लिए अगर किसी को चुना, तो वह एकमात्र अर्जुन रहा। राम ने तो कइयों को चुना होगा, कइयों का सहयोग लिया होगा, मगर कृष्ण वह महासारथी रहे, जिन्होंने दुष्टों और विधर्मियों को जीतने के लिए मनुष्य को ही उसका निमित्त पात्र बनाया । कृष्ण चाहते तो कंस की तरह कौरवों का संहार खुद कर सकते थे; शिशुपाल की तरह दुःशासन, शकुनि और दुर्योधन का सफ़ाया कर सकते थे, मगर ऐसा नहीं किया। वे चाहते थे कि यह गौरव मनुष्य को मिले । धरती पर ऐसा इतिहास लिखा जाये कि परमात्मा ने अवतार लेकर धरती पर छाये हुए अधर्म के नाश के लिए स्वयं मनुष्य को उसका निमित्त बनाया । भगवान करे यह गौरव फिर-फिर मानवता को मिले ।
कहा जाता है कि भगवान का एक आंशिक स्वरूप भी देखने को मिल जाये, तो भक्त कृतकृत्य हो जाता है। भगवान का किसी को मुख- दर्शन या चरण-दर्शन करने को मिला होगा, तो वह ब्रह्मा के रूप में एकरूप दिख गया होगा, विष्णु, महेश के रूप में एकरूप दिख गया होगा । भगवान बुद्ध, महावीर, पतंजलि, जीसस, मोहम्मद, या सुकरात - उनका केवल एक ही रूप देखने को मिला होगा, लेकिन यहां तो अर्जुन इतना महान पुण्यप्रतापी निकला कि उसे संपूर्ण रूप देखने को मिला। लोगों को भगवान के दर्शन करने के लिए न जाने कितनी लंबी-चौड़ी तपस्याएँ करनी पड़ती हैं, उनके नाम की मालाएं जपनी पड़ती हैं, फिर भी वे साकार नहीं हो पाते । अर्जुन ने न तो माला जपी, न गंगा स्नान किया ।
समर्पण ही चाहिए | 131
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