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________________ भीतर बैठा देवता जीवन का स्वरूप बड़ा अद्भुत है। ज्ञानीजन जिसे सुख कहते हैं, आम आदमी उस सुख के प्रति अपने आपको उदासीन बनाये रखता है और जिसे वे दुःख कहते हैं, साधरणजन को उसी में सुख की अनुभूति होती है । न जाने दुनिया को उसमें कौन-सा रस निर्झरित होता हुआ दिखाई देता है । हर आदमी उस दुःख सुख मानकर उसमें डूबा हुआ है । जिसे ज्ञानीजन खुजली का रोग कहकर उसके खुजलाने को जीवन के लिये त्रासदी समझते हैं, आम आदमी जानते-बूझते हुए भी उसे खुजलाने को आतुर है। जीवन का काव्य कुछ है ही ऐसा। I जीवन का गणित कुछ ऐसा विचित्र है कि जो सत्य है, वह असत्य लगता है और जो असत्य है, उसी में ही व्यक्ति को सत्य की झलक दिखाई देती है । तभी तो ज्ञानी की दृष्टि में जीवन कुछ और होता है और मूढ़ और अज्ञानी की नज़र में ज़िंदगी के मायने कुछ और ही होते हैं । जीवन का विज्ञान ही कुछ ऐसा है कि जो बहुत दूर है, वह तो बहुत नज़दीक दिखाई देता है और जो नज़दीक है, उस पर हमारी नज़र ही नहीं जाती । हर कोई चांद-सितारों तक पहुंचना चाहता है। सूरज, चांद और कोटि-कोटि ग्रह-नक्षत्रों की रश्मियाँ आदमी को इतना आकर्षित और आह्लादित करती हैं कि आदमी एकटक उन्हें निहारता है और जीवन की रोशनी भी उनमें तलाशता है । अपने ही चरणों के पास खिल रहे गुलाब 1 118 | जागो मेरे पार्थ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003890
Book TitleJago Mere Parth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year2002
Total Pages234
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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