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कहते हैं गाँव में एक आदमी ने मछलियों की एक दुकान खोली उस पर एक बोर्ड लिखाया- 'फ्रेश फिश सोल्ड हियर, यहाँ ताजी मछलियाँ बेची जाती हैं। पहले दिन दुकान खुली और एक आदमी आया उसने कहा कि यह फ्रेश फिश का क्या मतलब ? कहीं बासी मछलियाँ भी बेची जाती हैं ? उसने फ्रेश शब्द हटा दिया फिर बच गया 'फिश सोल्ड हियर' । दूसरे दिन एक बूढ़ी औरत आई उसने कहा- 'सोल्ड हियर', कहीं और भी बेची जाती हैं । यह हियर बिल्कुल बेकार है, वह उससे भी राजी हो गया, फिर तख्ती पर रह गया “फिश सोल्ड” । फिर एक आदमी आया उसने कहा 'सोल्ड' का क्या मतलब, कहीं मुफ्त भी मिलती है । फिर रह गया 'फिश' एक दिन फिर एक आदमी आया उसने कहा- फिश लिखने का क्या मतलब भाई, अंधे को भी गंध आ जाती है, उसने फिश भी हटा दिया । फिर बोर्ड रह गया खाली । एक दिन बोर्ड भी हट गया ।
तो यह जो शून्यता है इससे उठता है प्रेम । इस शून्य से ही प्रेम पैदा होता है । रवीन्द्रनाथ के अंतिम समय में उनके एक मित्र आये उन्होंने कहा भगवान से प्रार्थना कर लो कि वह बार-बार आने-जाने के चक्र में न डाले, आवागमन से छुट्टी मिल जाए । रवीन्द्रनाथ ने कहा- ऐसी प्रार्थना कैसे कर सकता हूँ ? जीवन इतना सुन्दर है । यह जीवन के प्रति प्रेम है ।
प्यास जीवंत होनी चाहिये । प्यास इतनी सघन होनी चाहिये कि बादलों को बरसना ही पड़े। अगर बादल नहीं बरस रहे हैं, तो टटोलो कि ऐसा तो नहीं कि प्यास ही नहीं है । पहले देखो कि सघन प्यास पैदा हो चुकी है या नहीं ? क्योंकि सघन प्यास है, तभी आप अपने आप को त्याग कर सकेंगे, अपने आपको खो सकेंगे । आषाढ़ में जब वर्षा की पहली फुहार धरती पर पड़ती है, तो उससे पहले भंयकर गर्मी पड़ती है; पेड़ के पत्तों को झड़ जाना पड़ता है; धरती का सारा पानी सूख जाता है; सागर भी जलने लगता है । तब कहीं जाकर आषाढ़ के बादल उमड़ते हैं, रिमझिम रिमझिम बारिश होती है ।
रिमझिम रिमझिम बरसे नूरा । नूर ज़हूर सदा भरपूरा ॥
तब वो रोशनी, वो नूर, वो शमां भी इस तरह बरसती है कि सूखे पेड़ हरे हो जाते हैं । इतने हरे कि जैसे पुनर्जन्म हुआ है। तब फिर से कोई योगक्षेम हमारा
116 | जागो मेरे पार्थ
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