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________________ ही न हो। भगवान कोई पैसे से मिले हैं? वे तो त्याग में वास करते हैं। वे बोली-चढ़ावे में कभी अपने प्राण आपूरित करते हैं ? भगवान का बसेरा तो हृदय में है, हृदय की श्रद्धा में है । हृदय की आनन्दमयी सुवास का नाम ही भगवान है । मैंने सुना है : कोई सम्राट शिकार खेलते हुए जंगल में भटक गया । घोड़ा दौड़ाते-दौड़ाते आखिर वह भूखा-प्यासा जंगल में किसी ठौर पर पहुँचा और देखा कि वहाँ एक छोटा-सा सरायखाना है । जोरों की भूख लगी हुई थी। उसने चार-पांच रोटियां जमकर खाई । जब हिसाब चुकाने की बात आई तो सम्राट ने पूछा-मैने भोजन किया है, इसके लिए कितना चुकाया जाये। सरायखाने के मालिक ने कहा कि सौ स्वर्ण मुद्राएं । सम्राट चौंका कि चार-पांच रोटियां और सौ स्वर्ण मुद्राएँ । उसने पूछा कि क्या इस इलाके में अनाज पैदा नहीं होता या कम पैदा होता है? क्या यहाँ रोटियाँ नहीं मिलतीं? सराय के मालिक ने कहा-हुजूर, यहां रोटियाँ तो बहुत मिलती हैं, लेकिन सम्राट कभी-कभी ही मिलते हैं, इसलिये यह रोटियों का नहीं, सम्राट का मूल्य है। ऐसे ही जब कभी-कभार प्रतिष्ठा होती है, तो आदमी सोचता है कि यह प्रतिष्ठा रोज-ब-रोज थोड़ी ही होती है, जितनी आमदनी कर ली जाये उतनी ही अच्छी। कृपया धर्म-क्षेत्र का व्यावसायीकरण मत कीजिये । परमात्मा का मार्ग सबके लिए है, वो सबके लिए समान है, क्या अमीर और क्या गरीब, परमात्मा का संबंध प्रेम और भाव के साथ है। परमात्मा कोई दुर्लभ तत्त्व नहीं है, कोई अलभ्य वस्तु नहीं है। परमात्मा हम सबके साथ है, हम सबके पास है । आंखों का, हृदय का दरवाजा खुला और उसकी रोशनी उभरी। मैं तो तेरे पास में बंदे, मैं तो तेरे पास में । नहिं खाल में, नहिं पौंछ में, ना हड्डी ना मांस में । ना मैं बकरी, ना मैं भेड़ी, ना मैं छुरी गंडास में । मैं तो रहौं सहर के बाहर, मेरी पुरी मवास में । खोजी होय तो तुरतै मिलि हौं, पल भर की तलाश में . कबीर कहते हैं मैं तो तुम्हारे पास हूँ। कोई उसे पाने लिए बकरे की बलि चढ़ाता है, कोई भेड़, श्रीफल और नैवेद्य चढ़ाता है, पर अपने आपको कौन चढ़ाता है ? किसी पौधे में से फूल तोड़कर चढ़ा देना क्षणभर की बात है, पर अपने जीवन 108 | जागो मेरे पार्थ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003890
Book TitleJago Mere Parth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year2002
Total Pages234
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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