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________________ ॐ : मंत्रों की आत्मा आज हमारे आत्म-संवाद गीता के आठवें अध्याय पर केन्द्रित होंगे। गीता की सार्थकता इसमें डुबकी लगाने से है । जब तक इन सूत्रों को हम अपने हृदय तक नहीं पहुंचने देंगे, तब तक ये सूत्र आत्मसात ही नहीं हो पाएंगे। जो डूबता है, वही पार लगता है और जो डूबने से कतराता है, वह डूब ही जाता है । डूबकर ही पाया जा सकता है । किनारे पर बैठे लोग गीता के सागर में उठने वाली तरंगों का आनंदभर ले सकते हैं । लेकिन वे सागरतल में रहने वाले अनमोल रत्नों और मोतियों तक नहीं पहँच सकते । मेरी ओर से आप सब लोगों को इन सूत्रों में डूबने के लिए भाव-भरा आमंत्रण है। गीता का सूत्र है 'ओम् इति एकाक्षरं ब्रह्म।' ओम् एक ऐसा अक्षर है, जो ब्रह्म स्वरूप है। संपूर्ण ब्रह्माण्ड में ब्रह्म का वाचक, संवाहक और ब्रह्म की पराध्वनि के रूप में ॐ सारे धर्म-शास्त्रों में प्रतिष्ठित है । ॐ वह पराशक्ति है, जो न केवल मंत्रों का सरताज है, वरन् कहा तो यह जाता है कि सारी सृष्टि इसी ॐ से व्युत्पन्न हुई है। हम सब लोग धन्य हैं यह सारा प्राणी-जगत धन्य है, जो ॐ से निष्पन्न हआ है। उन लोगों की सांसें संगीत और सुरभि से भरी हुई हैं, जिनकी सांसों में ॐ मुझमें है भगवान | 91 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003890
Book TitleJago Mere Parth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year2002
Total Pages234
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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