________________
अन्तर-सम्बन्धों का द्वीप है । आप कुछ भी करेंगे, वह आप तक वापस
आएगा। क्रोध करोगे तो वह वापस आप पर ही पाकर बरसेगा । प्यार बांटोगे तो प्यार मिलेगा।
कभी जंगल से गुजरो तो जोर से आवाज लगाना। वह आवाज वापस आपके कानों तक पहुंचेगी। जैसी आवाज दोगे, वैसी ही प्रतिध्वनि आपके कानों तक पहुंचेगी। यह सारा संसार हमारी प्रतिध्वनि ही तो है। जैसा हम करेंगे, हमारे साथ वैसा ही होगा । अगर हम परमात्मा बनकर सबके सामने पेश होंगे तो सभी लोग हमको परमात्मा की तरह नजर आएंगे। इसका कारण यही है कि यह जगत एक प्रतिध्वनि है। ..
___मनुष्य जैसा होगा, उसकी प्रतिछाया भी वैसी ही होगी। उससे अलग कोई दूसरी प्रतिछाया हो नहीं सकती, प्रतिध्वनि हो नहीं सकती। क्रोध करोगे तो क्रोध बरसेगा। आज नहीं तो कल, बरसेगा जरूर। धरती की अपनी एक सीमा है। क्रोध करोगे तो क्रोध और प्यार करोगे तो प्यार मिलेगा। ............ परमात्मा हमारा जन्म-सिद्ध अधिकार है। जैसे हम हैं, वैसा ही परमात्मा है। परमात्मा हम सबका स्वभाव है। उसे पाना यानि अपने स्वभाव को पाना है । स्वरूप को उपलब्ध होता है ।
परमात्मा को खोजने के लिए दूर जाने की जरूरत नहीं है । उसे पाने के लिए अपने भीतर समझ पैदा करने की जरूरत है। परमात्मा को कभी खोजा नहीं जा सकता। खोजा तो उसे जाता है जो खो गया हो। परमात्मा तो कहीं खोया नहीं है। परमात्मा किसी जगह छिपा नहीं बैठा है जो आप उसे खोजने जा रहे हो । परमात्मा तो हमारे भीतर ही है। हमारे आस-पास है। उसे देखने के लिए दृष्टि चाहिए, एक अन्तर्दृष्टि जो उजागर करनी है ।
( ८२ )
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org