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परिवर्तन की शुरूआत करने की देर है, फिर देखो कैसे जीवन में संन्यास घटित होता है । एक प्रयोग करके देखो । दिन भर के काम से निवृत्त होकर जब सोने लगो तो मात्र पाँच मिनट विचार करने बैठ जायो । दिन भर की अच्छी-बुरी बातों को याद करो। जो बुरा किया उसे दुबारा न करने का प्रण करो और जो अच्छा किया उसे फिर करो । देखना, कितना अन्तर आ जाता है।
आदमी केवल सूत्र बोलता है । तोता रटंत पर जीवन गुजार देता है । इससे रूपान्तरण नहीं होगा। आप भले ही दिन भर प्रतिक्रमण न करें लेकिन पूरे दिन की दिनचर्या को एक बार याद कर उस पर विचार कर लें, फिर देखिये, जो आपके जीवन में परिवर्तन आता है। केवल ऊपर की लीपा-पोती से काम नहीं चलेगा। जागरूकता जरूरी है । हर काम के प्रति सोच में सतर्कता चाहिये ।
एक सम्राट किसी सद्गुरु के पास पहुंचे और उनसे कहा - 'प्रभु ! मैं समाधि को आत्मसात करना चाहता हूं। आप मुझे कुछ सिखाएँ ।' सद्गुरु ने कहा- 'आ जाओ ! मैं तैयार हूं।'
सम्राट ने पूछा --'कितना समय लग जाएगा ?' गुरु ने बताया-२०-२५ साल तो लग ही जाएँगे ।' 'ये तो बहुत ज्यादा है, कुछ कम नहीं हो सकता ?' गुरु ने संशोधन किया-१० साल में हो जाएगा।' 'यह भी ज्यादा है ।' सम्राट हिचकिचाया। '५ साल ।' 'यह भी बहुत है।'
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