SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 53
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ गुरु के पास जाने से पहले आपको प्रतिज्ञा करनी होगी कि जैसा गुरु है, हमें भी वैसा ही बनना है। लेकिन हमारी परेशानी यह है कि हम जैसे हैं, वैसे भी बने रहना चाहते हैं और गुरु जैसा भी बनने की तमन्ना रखते हैं। . कई बार गुरु परीक्षा लेता है । वह शिष्य को कठोर बात कह देता है । अब बहुत से लोग तो ऐसे भी मिल जायेंगे जो कठोर बात सुनकर गुरु का ही गला पकड़ लेते हैं। कई लोग धर्म सभा में आकर तो गुरु के आगे शीश झुका देंगे, प्रवचन भी सुन लेंगे लेकिन बाहर जाकर उसी गुरु की आलोचना करने से भी नहीं चूकेंगे। आप क्या समझते हैं कि हमने गुरु को दो रोटी खिला दी तो हमें उसकी आलोचना का अधिकार मिल गया ? गुरु तो हर हाल में गुरु ही रहेगा। गुरु ने यदि हमारे द्वारा अजित धन का उपयोग कर लिया तो, यह तो हमारा परम सौभाग्य है । अनेक बार लोग गुरु की कमियों का जिक्र करते मिल जाते हैं । जरा गहराई में जानो तो पता चलेगा कि गुरु आपकी परीक्षा ले रहा था । गुरु अपनी अन्तश्चेतना से कुछ देता है तो परीक्षा भी लेता है । वह कसौटी पर कसता है और सन्तुष्ट होता है, तभी कुछ अवदान देता है। मैंने देखा है कि लोग गुरु के पास जाते हैं और पुत्र की कामना करते हैं । जैसे गुरु न हुआ, पुत्रदान की मशीन हो गया । गुरु का काम कोई पुत्र देना नहीं है । गुरु का अर्थ है जो आपकी मूर्छा तोड़े, आपको नींद से जगाये । यह विचार करोगे तभी गुरु के पास जाना सार्थक होगा। संसार को लेकर गुरु के पास गये, तो वहां तुम संसार और सांसारिकता को ही ढूढ़ोगे और खुद भी वही पाना चाहोगे । गुरु के पास जाप्रो, गुरु जैसा होने की तमन्ना लेकर । ( ४८ ) Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003889
Book TitleSamay ki Chetna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year1995
Total Pages158
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy