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श्री चन्द्रप्रभ ने समय को आत्मा का भी वाचक माना है और सिद्धांत का भी। सृष्टि के सर्जन, संचालन अथवा परिवर्तन में भले ही समय सबका सूत्रधार रहा हो, पर श्री चन्द्रप्रभ ने समय को फिर भी साक्षी ही माना है। समय और उससे सम्बद्ध विषयों पर श्री चन्द्रप्रभ द्वारा दिये गये ये उद्बोधन वास्तव में आत्मोत्सव के लिए आह्वान हैं।
हम अपने जीवन में इन अमृत वक्तव्यों को उतारकर समय के साथ कदम से कदम मिला कर चलें। हमें बीती को बिसार कर आने वाले पलों का भरपूर उपयोग करना है। जीवन को स्वर्ग की विभूति बनाना है।
'क्या हुअा मुरझा गया जो एक फूल, फूल ये सभी, एक दिन मुरझाएंगे । यही तो सबसे बड़ा सच है, पुराने जाएंगे और नए आएंगे ।।'
-मणि
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