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________________ आज एक बच्चा भी आपको अपने से ज्यादा अकलमंद नजर आएगा और ऐसा होता भी है, भले ही संस्कृति में पिछड़ जाएं, लेकिन हर नई पीढ़ी ज्ञान में अपनी पुरानी पीढ़ी से दो कदम आगे होती है । जो लोग सत्य को उपलब्ध करने के लिए कृत संकल्प हैं, उनके भीतर सतयुग अवतरित हुआ है । जो स्वयं के कल्याण के लिए काम रहा है, दूसरे का कोई भाव नहीं है, वह व्यक्ति द्वापर युग में जी रहा है । और जो आदमी सो रहा है, मूर्च्छा में है, वह वास्तव में कलयुग के नाम को चरितार्थ कर रहा है । एक ही व्यक्ति के जीवन में त्रेता, द्वापर और कलयुग संभावित है । मनुष्य की चेतना जग जाए, अगर मनुष्य समय को साध ले, उसके साथ मैत्री स्थापित कर ले, अगर व्यक्ति की चेतना सचेतन हो जाए तो आज के कलयुग में भी मनुष्य के लिए सतयुग है । कलयुग किताबों में होगा, अगर जाग हो तो श्राज ही सतयुग है । चरैवेतिचरैवेति- चलते रहो, बढ़ते रहो, यही जीवन का स्वर्णिम युगसूत्र है । अस्तित्व के प्रत्येक स्वभाव व परिवर्तन के साथ समय का भी अस्तित्व रहा है । समय की प्रासान - सी परिभाषा करनी हो तो हम कह सकते हैं कि समय का अर्थ है परिवर्तन- - बदलना । जो निरंतर परिवर्तनशील हो, वही समय । यही तत्व समय है । कोई भी काम करो, समय सगेगा । एक सांस भी लेनी हो तो समय लगेगा । आदमी सोचे कि समय के बगैर जी लूं, तो गलत सोचता है । एक शब्द बोलोगे तो भी समय लगेगा, सांस लोगे तो भी समय लगेगा । समय पर ही बीज अंकुरित होता है, समय पर ही प्रसव होता है । उत्पत्ति हो या संहार सबके पीछे समय है। न तो दुख सदा ( १३८ ) Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003889
Book TitleSamay ki Chetna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year1995
Total Pages158
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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