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की मृत्यु नहीं शरीर मरता है,
श्रादमी का स्वप्न टूट जाएगा लेकिन सत्य होगी । जीवन की भी कभी मृत्यु नहीं होती। फिर पैदा हो जाता है । इसलिए अगर हो सके तो अपनी जिन्दगी के शेष बचे सात दिनों का सदुपयोग करो। जितना अधिक जी सकते हो, जीने का प्रयास करो । जो आदमी थोड़ी देर पहले महल बनाने की सोच रहा था, अब समाधि की सोचने लगा । सात दिन तक उसने अपने आपको बदलने में कोई कसर न छोड़ी। वह सात दिन बाद मरा, लेकिन महानिर्वाण को प्राप्त हुआ । मृत्यु से पहले उसका निर्वाण हो गया ।
पार
मृत्यु से पूर्व ही वह निर्वाण प्राप्त करने की दिशा में बढ़ने लगा था । उसका जीवन समय के समुन्दर से मुक्त हो गया । लग गया । आदमी को तभी होश आता है । एक बात मैं बहुत ही प्यार के साथ कहना चाहूंगा कि इस समय का कोई ठिकाना नहीं है, क्या पता कब बदल जाए। मैंने बहुत अमीरों को गरीब बनते देखा है । अकड़े रहने वालों को धूल में मिलते देखा है । आपकी दुकान के आगे कोई भिखारी आ जाए तो आप कहते हैं 'जाम्रो, कहीं जाकर काम करो, पहलवान जैसा शरीर है और भीख मांगते हो ।'
समय का कोई भरोसा नहीं, कल को हमें भी किसी ने ऐसा कहा तो हमारी क्या हालत होगी । भिखारी लेने नहीं, कुछ देने आता है । आप उसे कुछ देते हैं तो बदले में वह आपको भी कुछ देता है । अन्तर इतना है कि उसका दिया दिखता नहीं है ।
इसलिए कोई काम कल पर मत टालना । कल, कल, कल, यह बात हमारे भीतर गहराई तक चली गई है । दूसरी ओर हमारे जीवन के साथ, समय के साथ बहुत बड़ा विरोधाभास है । आदमी को समय का बोध ही नहीं है । समय का मूल्य ही नहीं जानता वह । समय की चेतना तो किसी के पास है ही नहीं । आदमी बिना
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