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समय कोई पहचाने या न पहचाने, वह आदमी को उम्र भर घेरे रहता है। जैसे बादल आसमान को घेरे रहता है। जैसे सागर का पानी मछली को घेरे रहता है, ठीक उसी तरह समय मनुष्य के जीवन को घेरे रहता है। समय जीवन का घेरा है। मनुष्य का जन्म भी समय में होता है और मृत्यु भी इसी में निहित है । जन्म, जरा, रोग, मृत्यु हर घटनाक्रम के साथ समय का साक्षीभाव रहता है ।
कुन्दकुन्द ने एक मार्मिक पुस्तक लिखी है जिसका नाम है 'समयसार'। उनकी दृष्टि में समय का अर्थ है आत्मा, समय का अर्थ है सिद्धांत । समय में टिक जाने का नाम है सामायिक ।
जो व्यक्ति समय के सामयिक हो गया वो व्यक्ति सामायिक को उपलब्ध हो गया क्योंकि समय ही व्यक्ति के लिए प्रात्मा है, समय ही सिद्धांत है। पक्षपातों से मुक्त होने का नाम ही समय को उपलब्ध होना है, नय-पक्ष से रहित होना ही 'समयसार' है। अगर कुन्दकुन्द की दृष्टि से देखें तो उन्होंने जो अध्यात्म दिया है, वह बेजोड़ है। धरती पर ऐसा रत्न कोई विरला ही दे पाया। जिसमें समय का सार है, वही अध्यात्म है। जिस व्यक्ति ने समय के सार को उपलब्ध कर लिया वह समाधि को उपलब्ध हो गया। समय के रहते हुए समय से बाहर निकल जाना व्यक्ति के लिए स्थितप्रज्ञ हो जाना है।
समय का कोई एक विशिष्ट रूप नहीं है। समय के अनन्त रूप हैं और हर रूप विशिष्ट है। उसने अनगिनत मुखौटे लगा रखे हैं। उसके अनेक कृत्य हैं । कोई व्यक्ति पीड़ा में है तो उसका कारण समय है और कोई व्यक्ति प्रसन्न है तो इसका कारण भी समय ही है । भाई दगा दे रहा है, पत्नी धोखा कर रही है तो भी समय के कारण ।
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