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________________ बड़ा, कौन छोटा, सबमें वही प्रभु है । तुझमें जो है, मुझमें भी वही प्रभु है । 'अप्पा-सो-परमप्पा', ईश्वर अंश जीव अविनाशी । कोई भी छोटा या बड़ा नहीं है। गुरु भी नहीं। जो गुरु अपने शिष्य को हमेशा शिष्य ही बनाए रखता है, वह उसका वास्तविक गुरु नहीं है। शिष्य यदि गुरु से आगे बढ़ता है तो इसमें गुरु की ही महत्ता है । अगर चेला, चेला ही रहता है तो यह गुरु के लिए अशोभनीय है। द्रोणाचार्य ने एकलव्य को कुछ नहीं सिखाया। उसने अपने बलबूते पर ही तीरंदाजी सीखी और उसमें महारथ हासिल की। उसने अपनी कृतज्ञता प्रकट करने को द्रोणाचार्य को गुरु-दक्षिणा देनी चाही तो उन्होंने उससे अंगूठा मांग लिया ताकि वह अर्जुन से आगे नहीं निकल जाए । ऐसे गुरु को क्या कहा जाए ! राग तो किसी का भी नहीं होना चाहिए। महावीर तो गौतम से कहते हैं कि मेरा राग भी छोड़ दे। तुझे आगे बढ़ना है तो राग से पीछा छुड़ाना होगा। बांसुरी तो अपनी बजनी चाहिए, संगीत तो अपना होना चाहिए। आंगन देखे बार लाख ही, किन्तु अंधेरा नाश न होगा दीया पराये घर जलने से, तेरे यहां प्रकाश न होगा द्वार-देहरी बन्द किये क्यों, अांचल में मुह देकर बैठा, सूरज तो निकलेगा लेकिन, वो तेरा आकाश न होगा । अपना दीप हमें ही रोशन करना होगा। दीप हो हमारे घर का, भीतर के घर का । अपनी रोशनी ही अपने काम पाएगी। औरों की रोशनी हमारे किस काम की ? दूसरे का दीया तो आखिर दूसरे का ही है। जब तक वह है तब तक उसकी रोशनी है। वह ( ११६ ) Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003889
Book TitleSamay ki Chetna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year1995
Total Pages158
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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