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होगा, अपनी अंजुरी भर कर पानी कंठ तक ले जाना होगा | जिसने अंजुरी बनाली वह पानी पी लेगा, वह निश्चित तौर पर अमृतपान करेगा |
जीवन के छोटे-छोटे कृत्य पुण्य कृत्य हो सकते हैं । आप खाना बनाने जा रहे हों तो पहले आटे को देख लो, चूल्हे को देख लो तो यह देखना ही तुम्हारे लिए पुण्य कृत्य हो जाएगा । ऐसा करना भी मंदिर में जाकर परमात्मा की मूर्ति को देखना हो जाएगा । आपने आत्मभाव के साथ कंधे पर बैठा मच्छर भी उड़ाया तो यह भी पुण्य कृत्य हो जाएगा । यह परमात्मा का चंदन से पूजा-अर्चना करना हो जाएगा । यदि बेहोशी में मच्छर को उड़ाया और वह मर गया या बच गया तो भी वह पाप कर्म होगा । जीवन के हर कदम पर पाप और पुण्य के लेखे-जोखे हैं ।
धर्म और अध्यात्म ऐसे ही हैं । एक सिक्के के दो पहलू हैं । धर्म केवल एक रूढ़ीवादी परम्परा नहीं है कि लोग जैसे करते हैं, वैसे ही हम करते जायें । जिन्दगी और अध्यात्म भी सिक्के के दो पहलू हैं । हर कदम दर सचेतनता आवश्यक है । अगर जागरूकता के साथ क्रोध भी कर लोगे तो को क्रोध भी आपके कर्मों की निर्जरा का आधार बन जाएगा । दुनिया की अधिकांश किताबें कहती हैं कि क्रोध से कर्मों की निर्जरा नहीं होती, बंधन होता है । लेकिन ऐसा नहीं है अध्यात्म हमें यही सिखाता है कि बोध के साथ क्रोध करोगे तो वह क्रोध क्रर्मों की निर्जरा का कारण बनेगा ।
हमारी दृष्टि सम्यक् हो जाए तो हम चेतन द्रव्यों का सेवन करें या अचेतन का, हमारे कर्मों की निर्जरा अनिर्वाय रूप से होगी । हमारे कर्मों की प्रकृति सुधरेगी । क्रोध आया तो आने दीजिये ।
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