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सम्यक्त्व की सुवास
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चाहता हूँ, क्या आप मुझे उसका ईमानदारी से जवाब देंगे? मैं आपके द्वारा दिए गए जवाब से जीवन का एक महत्त्वपूर्ण निष्कर्ष निकालना चाहता हूँ।' चूंकि वह साधक व्यक्ति थे अतः मुझे यह विश्वास था कि उनका जवाब अनुभवसिद्ध और ईमानदारी से परिपूर्ण होगा। उनके द्वारा स्वीकृति दिए जाने पर मैंने पूछा, 'आपकी पत्नी को गुजरे हुए कितने वर्ष हो गए ?' वह बोले 'दो वर्ष।' मैंने पूछा, 'क्या आपको इस उम्र में भी पत्नी की याद सताती है और आपको कभी इस बूढ़ी काया में भी कभी विकृति की कोई तरंग उठती हुई दिखती है।' उन्होंने एक गहरी साँस लेते हुए जवाब दिया, 'हाँ साहब, पत्नी की याद भी सताती है और कभी-कभी मन में विकृति की तरंग भी उठ आती है।' .
मैंने उन्हें साधुवाद दिया, जीवन के प्रति ईमानभरी दृष्टि और जवाब के लिए। तब मुझे लगा कि चौरानवें वर्ष की बूढ़ी काया में भी वह अन्धा प्रवाह जारी रहता है। अच्छा, अब मैं आप सबसे प्रश्न पूछता हूँ लेकिन जवाब ईमानदारी से दीजिएगा। आप सभी कभी-न-कभी क्रोध करते ही होंगे। एक वर्ष में कितनी बार आप क्रोध की आग से गुजर जाते हैं ? मान लेते हैं एक वर्ष में व्यक्ति पचास बार क्रोध करता है और यदि आज पचास वर्ष की उम्र है तो आप पच्चीस सौ बार क्रोध कर चुके हैं। क्या पच्चीस-सौ-एक-वीं बार पर क्रोध का निमित्त मिलने पर आपके मन में यह चिन्तन उठता है कि मैं यह क्या कर रहा हूँ ? हमारा सारा ज्ञान, सारा ध्यान उस अन्धे प्रवाह के आगे धरा रह जाता है।
आप गृहस्थ जीवन जी रहे हैं, दाम्पत्य-जीवन का भी उपभोग करते होंगे। एक वर्ष में कितनी बार आपने इस जीवन का उपभोग किया? मान लेते हैं कि एक वर्ष में पचास बार उपभोग किया गया और आपकी शादी यदि बीस वर्ष की उम्र में हुई हो तो आप आज पचास वर्ष की उम्र तक पन्द्रह सौ बार उपभोग कर चुके। क्या आप को पन्द्रह-सौ-एक-वीं बार यह विचार उठता है कि मैं यह लॉलीपॉप कब तक चूसता रहूँगा? इस दलदल में कब तक लिपटा रहूँगा?
शायद आप यह सोचते भी हों कि अब मैं दाम्पत्य जीवन नहीं जिऊँगा, पर वह अन्धा प्रवाह फिर-फिर उठता है और व्यक्ति विवश हो ही जाता है। हम अपने गुलाम स्वयं ही बन जाते हैं । जैसे कि बाढ़ का पानी आता है तो व्यक्ति चाहता है कि वह नहीं डूबे और नहीं मरे, पर बाढ़ के उस प्रवाह में स्वयं पर नियन्त्रण नहीं रहता और वह बह ही जाता है।
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