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________________ सम्यक्त्व की सुवास में बदलूँगा। चण्डकौशिक ने संकल्प लिया कि वह किसी को डंक नहीं मारेगा, किसी पर विषैली फुफकार नहीं छोड़ेगा और वह किसी पर क्रोध भी नहीं करेगा।' __ अगर बोध की किरण जीवन में उतर जाए तो कोई चण्डकौशिक भी भद्रकौशिक बन जाता है और यदि बोध प्राप्त हो तो कोई भद्रकौशिक भी चण्डकौशिक बन जाता करता है। ___ एक बार कोई संत 'मेघ' रात को आने-जाने वाले सन्तों की ठोकरों से विचलित हो जाते हैं। जैसे आप यहाँ बैठे हैं,और बार-बार आपको आने-जाने वाले लोगों की ठोकर लगे तो आप भी विचलित हो जाएँगे। वैसे ही मेघ मुनि भी विचलित होकर सोचने लगे, 'कल तक मैं एक राजकुमार था। किसी भी व्यक्ति की क्या हिम्मत जो मेरा जरा भी अपमान करे। सभी मेरे सामने अपना सिर झुकाए रखते थे और आज मुझे सोने के लिए दरवाजे के पास जगह मिली है। निवृत्ति या अन्य किसी काम से आने-जाने वाले सन्तों के पाँव की धूल और ठोकर बार-बार मुझे लगती है जिसके कारण मैं निद्रा भी नहीं ले पा रहा हूँ।' वह मन ही मन निर्णय करते हैं कि कल सुबह होते ही मैं घर रवाना हो जाऊँगा। ___ सुबह होते ही मेघ मुनि जैसे ही घर की तरफ लौटने के लिए मुड़ते हैं; भगवान महावीर वात्सल्यपूर्ण वाणी में कहते हैं, 'मेघ! कहाँ जा रहे हो? अपने अतीत में तुमने एक खरगोश की रक्षा करने के लिए तीन दिन और तीन रात की पीड़ा सहन कर ली और आज तुम एक एक ही रात की ठोकरों से विचलित हो गए !' ___मेघ कुमार सोचते हैं कि भगवान यह क्या कह रहे हैं? वह सोचते-सोचते अपने अन्तर में उतर जाते हैं और स्पष्ट हो जाता है स्वयं का अतीत, स्वयं के सामने। ___ अतीत में वह एक गजराज रहा। अचानक एक दिन जंगल में आग लग जाती है। वह गजराज आग से रक्षा करने के लिए जंगल के एक भाग को साफ करता है। वह उस भाग से सभी पेड़-पत्तियाँ उखाड़ देता है ताकि आग वहाँ फैल न सके। जंगल के अन्य पशु-पक्षी भी अपनी सुरक्षा के लिए उस स्थान पर आकर खड़े हो जाते हैं। हाथी भी उन जानवरों की भीड़ में किसी तरह जगह बनाकर खड़ा हो जाता है। थोड़ी ही देर में हाथी को खुजली उठती है। वह खुजलाने के लिए अपना एक पाँव उठाता है। वह खुजलाकर पाँव नीचे रखता, उसके पूर्व ही उस थोड़ी-सी Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003888
Book TitleJage So Mahavir
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year2012
Total Pages258
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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