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________________ जागे सो महावीर जाता है। वह बहुत कोशिश करने लगा निकल जाने की, पर निकल नहीं पा रहा था। गाय डर के मारे भाग रही थी और मोतीभाई बार-बार घसीटा जा रहा था। आखिर गाँव के कुछ समझदार-सज्जन लोगों ने गाय को नियंत्रण में लिया और सींगों में फँसे मोतीभाई पटेल को बाहर निकालकर कहा, 'अरे बुद्धू ! किसी काम को करने से पहले थोड़ा सोच भी लिया कर । मोतीभाई बोला, 'और कितना सोचता ! छह-छह महीने सोचकर ही तो माथा भिड़ाया था।' सावधान ! तुम भी कहीं अपना माथा, किसी से ऐसे मत भिड़ा बैठना जैसे पटेल का माथा सींगों के बीच में था; वरना तुम्हारा सिर सलामत नहीं रहेगा। भगवान कहते हैं कि 'अविजित कषाय और इन्द्रियाँ ही आत्मा के शत्रु हैं। उन्हें जीतकर मैं यथान्याय विचरण करता हूँ, इसलिए व्यक्ति अपने कषायों को, अपने इंद्रिय-विषयों को जीतकर अपना मंगल मित्र बने। इसी संदर्भ में एक और सूत्र है - ___ जो सहस्संसहस्साणं, संगामे दुज्जए जिणे। एगं जिणेज्ज अप्पाणं, एस से परमो जओ।। जो संग्राम में हजारों-हजार योद्धाओं को जीतता है, उसकी अपेक्षा जो एक अपने को ही जीत लेता है, उसकी विजय ही परम विजय है। __भगवान के रक्त में क्षत्रियता का संचार था, इसलिए वे लड़ने और जूझने की बात करते हैं। वे बाहरी शत्रुओं से लड़ने के लिए नहीं कहते, क्योंकि लड़ाई तो अहंकार के लिए लड़ी जाती है, जो अन्तत: जीतने पर भी हार में बदल जाती है। महावीर कहते हैं : 'लड़ो, अपने आप से; अपने विकारों से, अपने कषायों से।' उन्होंने पृथ्वी-विजेता या लोक-विजेता बनने के लिए ऐसा नहीं कहा। वे तो कहते हैं : 'आत्म विजेता बनो, क्योंकि आत्मविजय ही परम है, श्रेष्ठ है। इस विजय के पश्चात् व्यक्ति के लिए कोई विजय शेष नहीं रहती। ___ महावीर जिस लड़ाई की बात करते हैं, उसके लिए कोई चाकू-तलवार नहीं चाहिए। उस लड़ाई के लिए जिस अस्त्र की जरूरत है वह है व्यक्ति का दृढ़ मनोबल, अन्तर-सजगता, आत्म-पुरुषार्थ । छोटी-मोटी लड़ाइयाँ तो बहुत हो गईं। किसी ने साइकिल से टक्कर मारी और तुमने उसे चाँटा रसीद कर दिया। बाहर लड़ाई करने वाला व्यक्ति तो महावीर की दृष्टि में बेवकूफी है। महावीर के Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003888
Book TitleJage So Mahavir
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year2012
Total Pages258
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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