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________________ हम ही हों हमारे मित्र तो फिर संकल्प करता है कि अब भविष्य में कभी नहीं खुजलाऊँगा। इस तरह व्यक्ति की जिन्दगी इन कच्चे और कमजोर संकल्पों में खत्म हो जाती है। मनुष्य जो स्वयं एक मंदिर है, वह मंदिर नहीं रह पाता। वह मात्र माटी का पुतला बन जाता है। माटी का दीया माटी में मिल जाता है। माटी का दीया माटी के दीयों से ही चिपके रहने के कारण स्वयं में प्रकाश की लौ का संचार नहीं कर पाता। इसीलिए भगवान ने कहा कि व्यक्ति अपने अविजित कषायों एवं इन्द्रियविषयों को जीते। अविजित आत्मा ही मनुष्य का प्रबलतम शत्रु है। आपके बाह्य शत्रुओं को मित्र बनाने का राज तो मैं बता दूँगा, मगर आपके आंतरिक शत्रुओं काम, क्रोध, लोभ, मोह, माया आदि कषायों को जीतने के लिए तो आपको स्वयं ही पुरुषार्थ करना पड़ेगा। ___ इसे यों समझें। एक सज्जन थे मोतीभाई पटेल। दुनिया में समझदारी के लिए यदि किसी का नाम लिया जाता है तो वे हैं वल्लभभाई पटेल, पर दूसरी तरह के 'समझदारों के लिए जिस व्यक्ति का नाम लेते हैं, वे हैं मोतीभाई पटेल। मोतीभाई पटेल का रोज का नियम था-नीम की दाँतुन लेकर घर के बाहर बैठकर दांतों को साफ करना। मोतीभाई जब दांतुन करने बाहर बैठता तो रोज एक गाय भी उसके पास आकर खड़ी हो जाती। मोतीभाई रोज उस गाय को देखता और सोचता कि कितनी सुन्दर और सुडौल गाय है। इसके सींग भी कितने सुनहरे और सुन्दर हैं। गाय के सींगों को देखकर मोती भाई के मन में आता कि कभी इन सींगों को मैं अपने माथे पर लगाकर देखू कि कैसा सौन्दर्य खिलता है, कैसा 'गेटअप' आता है? वह सोचता पर फिर डर जाता कि कहीं सींग उतारने और माथे में लगाने के चक्कर में कुछ गड़बड़ न हो जाए। फिर सोचता कि माथा ही सींगों में डाल लिया जाए। ___ इस प्रकाररोज वह गाय को देखता और फिर-फिर वही सोचता। उसे सोचतेसोचते कई महीने गुजर गए। एक दिन उसके मन में प्रबल इच्छा उठी। उसने सोचा कि आज तो कुछ भी हो जाए, वह अपना माथा उन सींगों में फँसाकर ही देखेगा कि कैसी सुन्दरता खिलती है ? मोतीभाई ने अपना माथा गाय के दोनों सींगों के बीच डाल दिया। माथा डालते ही गाय बिदक पड़ी और इधर-उधर भागने लगी। मोतीभाई सींगों में फंस चुका था, वैसे ही जैसे मनुष्य कषाय और इन्द्रिय-विषयों में फंस Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003888
Book TitleJage So Mahavir
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year2012
Total Pages258
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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