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________________ साधना राग की, प्रार्थना वीतराग की हैं, 'हे मेरे वत्स ! यदि तुम इस भयानक और घोर भवसागर से पार होना चाहते हो तो तप और संयम रूपी नौका को तुरन्त ग्रहण करो।' दुनिया में कितने लोग भवसागर से पार होना चाहते हैं ? आप लोगों में से कितने व्यक्ति मंदिर जाकर अपनी मुक्ति के लिए प्रार्थना करते हैं? मंदिर में जाकर यह कह देना आसान है कि भगवान मुझे मुक्ति दो, पर ये प्रार्थनाएँ मात्र सतही है, सब ऊपर-ऊपर की बातें हैं। हकीकत में आदमी भव-सागर से पार ही नहीं होना चाहता। यदि चाहता है तो भगवान उनके लिए ही कहते हैं कि तप और संयम रूपी नौका को ग्रहण करो। भगवान सचेत करते हैं कि व्यक्ति क्षण भर का भी प्रमाद न करे। समय बहुत निर्दयी होता है जो यह नहीं देखता कि कब किस व्यक्ति को जीवन दिया जाए या कब किसको मृत्यु। हो सकता है कि अपना अगला ही क्षण मृत्यु का हो। मुहूर्त बड़े क्रूर होते हैं और शरीर बड़ा निर्बल। इसलिए जो व्यक्ति ‘मन-मन' करते रहते हैं, वे कुछ नहीं कर पाते। कहते हैं न कि मारवाड़ मनसूबे में डूबी। व्यक्ति मुक्ति नहीं चाहता। उसकी मुक्ति की प्रार्थनाएँ तो मात्र अपनी कथित प्रार्थना को वज़नदार और स्वयं को झूठी तसल्ली देने के लिए होती हैं। विद्यार्थी प्रार्थना करता है कि भगवान ! मुझे अच्छे अंकों से पास कर देना। कुंआरे प्रार्थना करते हैं कि भगवान, हमारा ब्याह अच्छे घर में हो जाए। व्यवसायी प्रार्थना करता है कि भगवान ! व्यवसाय मन्दा चल रहा है, कमाई अच्छी हो जाए। बूढ़ा व्यक्ति कहता है कि हे भगवान ! मरने के पहले मुझे पोते का मुँह दिखा दे। मुक्ति कोई नहीं मांगता। ___ कहते हैं : भगवान के पास एक बार कोई ब्राह्मण पहुँचा और बोला, भगवन् ! आप सबको मुक्ति का मार्ग दिखाते हैं, सबको धर्म और आत्म- कल्याण का पथ दिखलाते हैं। आपके अनुयायी भी बहुत से लोग हैं। मेरे मन में एक शंका है कि आपके मार्ग का अनुसरण कर जब सभी मुक्ति पा लेंगे तो सिद्ध-शिला में क्या जगह की कमी नहीं हो जाएगी? आखिर सिद्धशिला का क्षेत्र तो सीमित ही है। उसमें सारा संसार कैसे समायेगा? भगवान ने सुना और मुस्कुराए। वे बोले, 'वत्स ! मैं तुम्हारी शंका का समाधान करूँ, उससे पहले मैं तुम्हें एक सेवा सुपुर्द करना चाहता हूँ।' ब्राह्मण बोला, 'प्रभु, यह तो मेरा सौभाग्य है कि आपने मुझे सेवा का अवसर दिया, अन्यथा आप तो किसी से कुछ कहते ही नहीं।' भगवान बोले, 'तुम आज गाँव में जाकर यह कह दो कि भगवान कल सब की इच्छा पूरी करेंगे। इसलिए जिस व्यक्ति की जो इच्छा हो, वह तुम्हें लिखवा दे। लेकिन एक व्यक्ति Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003888
Book TitleJage So Mahavir
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year2012
Total Pages258
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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