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________________ जागे सो महावीर २६ भी साथ ले जाना तुम्हारे लिए नामुमकिन हो जाएगा। सिकन्दर ने कहा था कि मेरी अरथी निकले, ताबूत सजाया जाए तो मेरे हाथ ताबूत के बाहर रखे जाएँ ताकि संसार को पता चले कि दुनिया की अकूत सम्पत्ति का मालिक भी आखिर खाली हाथ गया। आया था तो मुठ्ठी बाँधकर गया तब हाथ पसार कर। अंधा, अंधो ठेलते, दोऊ कूप पड़ंत । तीसरा सूत्र है : सेणावइम्मि णिहए, जहा सेणा पणस्सई । एवं कम्माणि णस्संति, मोहणिज्जे खयं गए ॥ यह सूत्र भी कर्मदृष्टि पर आधारित है। भगवान कहते हैं, 'जिस प्रकार सेनापति नष्ट हो जाने पर सेना समाप्त हो जाती है, वैसे ही एक मोहनीय कर्म के नष्ट हो सभी कर्म नष्ट हो जाते हैं । ' हमारी लड़ाई किससे चलती है ? सेना से । यदि सेनापति को ही नष्ट कर दिया जाए तो सेना की शिकस्त तो है ही। हम तो अपनी लड़ाई छोटी-मोटी सेना से ही करते हैं। कभी एकादशी या पंचमी का व्रत कर लिया तो कभी इन तिथियों में हरी सब्जी न खाने का नियम रख लिया। कभी गाजर-मूली छोड़ी, तो कभी आलूगोभी । अरे, लड़ना है तो ऐसी लड़ाई लड़ो जहाँ तुम आत्म-विजय का ध्वज फहरा सको, अपनी जीत का जश्न मना सको । तुम जिनत्व के, वीतरागता और जितेन्द्रियता के अधिकारी तब ही बन सकोगे जब तुम्हारी लड़ाई सेना से न होकर सेनापति से होगी । वह सेनापति है, मोहनीय कर्म । कर्म के आठ चरण हैं जिसमें चौथा चरण हैमोहनीय कर्म। भले ही यह क्रम में चौथा है, पर सबसे घातक है, मुक्ति में बाधक है। ज्ञानावरणीय, दर्शनावरणीय, वेदनीय, मोहनीय, आयु, नाम, गौत्र और अंतराय- ये हैं कर्म के आठ चरण । वैसे तो कर्म की अनन्त प्रकृतियाँ और अनन्त भाग हैं, पर मोटे तौर पर इनका आठ भागों में विभाजन किया गया है। ज्ञानावरणीय यानी जो ज्ञान पर परदा डाल देता है । जैसे बादल से ढक जाने पर सूर्य अपना प्रकाश चारों तरफ नहीं फैला पाता, वैसे ही ज्ञानावरणीय कर्म के कारण व्यक्ति अज्ञान के आवरण से घिर जाता है और स्वाभाविक ज्ञान का प्रकाश नहीं पा पाता। दर्शनावरणीय यानी वह कर्म जो व्यक्ति की मौलिक श्रद्धा पर, उसके दर्शन पर आवरण डाल देता है। यह बिल्कुल वैसा ही है जैसे कोई द्वार - रक्षक बीच में रुकावट बन जाता है और हम मंत्री या राजा से नहीं मिल पाते । Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003888
Book TitleJage So Mahavir
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year2012
Total Pages258
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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