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________________ २२४ जागे सो महावीर अतिरिक्त कुछ ग्रहण नहीं करूँगा। आपको कुछ करना भी नहीं पड़ा और हो गया आपका पाँच घण्टे का त्याग। इस तरह यदि आप चौबीस घंटे एकत्र कर लेते हैं तो हो गया आपका एक उपवास। कितने सरल और छोटे-छोटे त्याग हैं ! __इसी प्रकार सुबह दूध-नाश्ता कर लेने के बाद आप खाना जब तक नहीं खाते, उतने घण्टे तक का त्याग कर सकते हैं। यह तो हुआ बाह्य त्याग, पर आप आभ्यंतर त्याग भी कर सकते हैं। आप यह नियम ले सकते हैं कि मैं प्रतिदिन दो घण्टे तक हर परिस्थिति में मौन रहूँगा। ____ आप सुबह उठकर यह प्रतिज्ञा ले सकते हैं कि आज चौबीस घण्टे में चाहे कैसी भी परिस्थिति बने, पर मैं क्रोध नहीं करूँगा। क्रोध का प्रत्याख्यान ही वास्तविक प्रत्याख्यान है। यह ऐसा त्याग, ऐसा पच्चक्खाण है जो जीवन में परिणाम देगा। भूखा तो हर किसी से नहीं रहा जा सकता, पर क्रोध का त्याग तो किया ही जा सकता है। भगवान ने कहा है इस प्रकार छोटे-छोटे त्याग करना, सीमा तथा मर्यादा में रहना श्रावक-धर्म का पालन करना है। ___ समग्रत: भगवान ने छह आवश्यक कहे। पहला 'सामायिक' जिसका अर्थ है कि हर परिस्थिति में समता रखी जाए। दूसरा स्तवन', जहाँ श्वास-प्रतिश्वास में परमात्मा की स्मृति बनी रहे, हर क्षण परमात्मा की संस्तवना होती रहे। तीसरा 'प्रतिक्रमण', जहाँ व्यक्ति स्वयं द्वारा किए गये उचित-अनुचित कार्यों की समीक्षा करे और अपने अपराधों, भूलों एवं गलत कृत्यों का प्रायश्चित्त और पश्चात्ताप करे। चौथा 'वंदना', अर्थात गुरुजनों को वन्दन समर्पित किये जाएँ। पाँचवा 'कायोत्सर्ग', यानी देह के प्रति मूर्छा-भाव का त्याग कर आत्मा का ध्यान किया जाए और छठा 'प्रत्याख्यान' अर्थात् व्यक्ति छोटे-छोटे त्याग के नियम ग्रहण करे। भगवान ने ये जो छ: 'आवश्यक' बताए हैं, प्रत्येक सद्गृहस्थ और प्रत्येक श्रमण को उनका पालन करना चाहिए। ज्यों-ज्यों ये छह आवश्यक आत्मसात् किए जाएँगे, त्यों-त्यों व्यक्ति आध्यात्मिक सत्य, आध्यात्मिक सौन्दर्य और आध्यात्मिक कल्याण को उपलब्ध करता जाएगा। आवश्यक कृत्य शाब्दिक नहीं, आत्मिक हों। मनोविकारों से छूटने का प्रयत्न करना ही सच्चा और आत्मिक त्याग है। अपनी ओर से आज इतना ही निवेदन है। नमस्कार ! 000 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003888
Book TitleJage So Mahavir
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year2012
Total Pages258
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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