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धार्मिक जीवन के छह सोपान इन सब बातों के मनन के लिए ही यह समय रखा गया था। __ आप प्रतिक्रमण के दौरान भगवान महावीर के छहमासी तपचिंतन निमित्त कायोत्सर्ग करते हैं। वस्तुत: यह कायोत्सर्ग का समय छह नवकार गिनने के लिए नहीं होता वरन् इसलिए होता है कि व्यक्ति उस समय भगवान के तप के बारे में
और अपनी शक्ति के बारे में विचार करे। वह यह चिंतन करे कि प्रभु ने तो छह माह तक उपवास किया, पर क्या मैं छह मास तक निराहार रह सकता हूँ? क्या मैं पाँच, चार, तीन, दो या एक माह तक भी उपवास कर सकता हूँ ? जब व्यक्ति को लगे कि उसका शरीर एक उपवास करने में भी समर्थ नहीं है तो वह नवकारसी या पोरसी का प्रत्याख्यान ले।
हर चीज की समझ होनी चाहिए कि हम क्यों कर रहे हैं? देह के प्रति मूर्छा के त्याग का नाम ही कायोत्सर्ग है। बुद्ध के पास यदि कोई दीक्षा लेने आता तो वे उसे सबसे पहले यह कहते, 'तुम तीन महीने तक श्मशान में रहो, उसके बाद मेरे पास आना।' वे ऐसा इसलिए कहते ताकि वह व्यक्ति श्मशान में रहकर जान सके कि देह का उपसंहार क्या होता है और देह का वास्तविक रूप क्या है? जब वह यह जान लेता है कि यह शरीर तो दो मुट्ठीराख भर है तो वह संन्यास लेकर देह के पोषण, शृंगार और पालन में ही नहीं लगा रहता, वरन् वह देह की अनित्यता को जानकर नित्यता की तरफ अपने कदम बढ़ाता है। बुद्ध ने देह की मूर्छा को तोड़ने के बाद ही ध्यान करने की सीख दी थी। ___ अब छठा और अंतिम आवश्यक' लें- 'प्रत्याख्यान' । प्रत्याख्यान अर्थात् त्याग, छोटे-छोटे नियमों द्वारा व्यक्ति मर्यादित रहे।आप से उपवास नहीं होता तो कोई बात नहीं। दो दिन के लिए रात्रि-भोजन का त्याग कर दें। आपको मिल गया एक उपवास का फल। उपवास में चौबीस घण्टे का त्याग किया जाता है। आपने एकरात्रि का भोजन त्याग करके बारह घण्टे का व दूसरी रात्रि का भोजन का त्याग करके फिर बारह घण्टे का त्याग कर दिया। इस प्रकार आपका चौबीस घण्टे का त्याग हो गया। आप पूरा दिन भर ही खाते हैं, रात को न खाया तो क्या फर्क पड़ेगा ! यह शरीर कोई फैक्ट्री थोड़े ही है जो पूरे दिन चलाते रहो। आप सुबह छ: बज तक उठते हैं और सात बजे तक आप कुछ नहीं खाते तो आपका नवकारसी का पच्चक्खाण हो सकता है। छोटे-छोटे त्याग आपको तप की गहराइयों में उतारने में सहायक होंगे। जैसे अभी आप यहाँ बैठे हैं, आपने बारह बजे खाना खा लिया है तो आप यह प्रतिज्ञा कर सकते है कि मैं बारह से पाँच बजे तक पानी के
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