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जागे सो महावीर
कारण आज मेरी गुरुणी को ऊँचे स्वर में बोलना पड़ा। मैंने अपराध किया है। मेरे द्वारा गलती हो गई है। मुझसे बड़ी भारी भूल हुई है।' वह पश्चात्ताप के भाव में इतनी भर गई कि प्रतिक्रमण करते-करते उसे केवल ज्ञान, परम ज्ञान, परमदर्शन प्राप्त हो गया ।
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पता तब चला जब रात्रि को साध्वी मृगावती ने अपनी गुरुणी के हाथ के पास से साँप को गुजरते देखा । उन्होंने धीरे से महासती चन्दनबाला का हाथ खिसका दिया ताकि साँप को रास्ता मिल सके। जैसे ही चंदनबाला का हाथ मृगावती ने खिसकाया, उनकी नींद खुल गई। उन्होंने मृगावती से इसका कारण पूछा तो उसने कहा, 'वस्तुत: इधर से एक साँप गुजर रहा था । उसे जाने का रास्ता आराम से मिल सके, इसीलिए मैंने आपका हाथ खिसकाया।
महासती चन्दनबाला चौंक उठी और बोली, 'क्या इस अमावस्या की सघन काली रात्रि में भी तुम्हें साँप दिखाई दे गया ?' मृगावती बोली, 'यह सब आपकी ही कृपा है।' चन्दनबाला बोली, 'तो क्या तुम केवलज्ञान, केवल दर्शन की स्वामिनी बन गई हो ? मृगावती बोली, 'यह सब आपकी ही कृपा है । '
चन्दनबाला पश्चात्ताप के भावों में भर गई, 'अहो, मुझसे कितना बड़ा दुष्कृत्य हो गया। मेरे द्वारा एक केवली की आशातना हुई है।' कहते हैं कि प्रतिक्रमण के भावों में एक ही रात में दो साध्वियों को केवलज्ञान उपलब्ध हुआ । यह है प्रतिक्रमण
का प्रभाव ।
हम भी कोई ऐसा प्रतिक्रमण करें। जब तुम मंदिर जाओ तो परमात्मा को फूल मत चढ़ाना बल्कि शाम को तुमने एकांत में बैठकर जो अपने द्वारा अतीत में हुए, वर्तमान में हो रहे पापों और अपराधों की गठरियाँ बनाई हैं, उन्हें परमात्मा को पुष्पों की जगह समर्पित कर देना । तुम परमात्मा से प्रार्थना करना, 'प्रभु! मेरे पास तुझे समर्पित करने के लिए अपने दुष्कर्म ही हैं, क्योंकि तू ही मुझे उनसे मुक्त कर सही मार्ग प्रदान कर सकता है। मेरे पास पुण्य तो थोड़े ही हैं, पर यदि मैं तुझे पश्चात्ताप के भाव से अपराध भी सौंपता हूँ तो मैं जानता हूँ कि तू प्रतिफल में मुझे पुण्य ही प्रदान करेगा। तू मेरे पापों को क्षमा कर प्रभु ! क्षमा कर ।'
जहाँ ऐसी भावदशा आ जाती है, वहीं चेतना को वास्तविक प्रतिक्रमण के भाव उपलब्ध होते हैं। केवल प्रतिक्रमण के पाठ दोहरा लेने से कुछ फायदा नही होने वाला है। हम प्रतिक्रमण को थोड़ा व्यावहारिक बनाएँ । एक कॉपी बना लें और उसमें स्वयं द्वारा होने वाला हर एक अपराध, एक-एक गलती लिखें। इस
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