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धार्मिक जीवन के छह सोपान
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कुम्हार ने घड़े बनाते-बनाते ही कहा, 'अरे ! इन पाखण्डियों से कौन माथा लड़ाए ? काम-धाम तो कुछ करते नहीं और महाराज बनकर घर-घर भीख माँगते फिरते हैं ।' कुम्हारिन गुस्से से बोली, 'वे बड़े दिव्य संत हैं। तुम उन्हें पाखण्डी मत कहो । यदि तुम यहाँ से उठकर उन संत के पास नहीं गये और उनकी आहार आदि की व्यवस्था नहीं की तो आज शाम को तुम्हारा भी हुक्का-पानी बंद समझो । '
कुम्हार अपनी कुम्हारिन के स्वभाव को जानता था। वह उठा और बोला, 'तू इतनी नाराज क्यों होती है? एक - दो रोटी मैं उनको भी दे दूँगा ।' यह कहते हुए कुम्हार बाहर गया। वहाँ उसने देखा कि एक संत खड़े थे । कुम्हार ने कहा, 'महाराज ! क्या नाम है आपका?' संत ने जवाब दिया, 'उदायी । ' संत का नाम सुनते ही कुम्हार काँपने लगा। उसे राजाज्ञा याद हो आई । वह वहीं से चिल्लाया, 'अरे कुम्हारिन, जानती भी है कि ये कौन हैं? ये संत उदायी हैं । तू तो मेरे हुक्के - पानी को बंद करने की बात करती थी, पर यदि इनको आहार या स्थान दिया गया तो हमारा झोपड़ा ही जला दिया जाएगा।' कुम्हारिन बोली, 'अहो ! तो क्या ये राजर्षि उदायी हैं? हमारा अहोभाग्य है कि एक राजा चलकर खुद हमारी झोंपड़ी तक आये हैं और तुम अपने द्वार पर आए एक राजर्षि को यों ही लौटा रहे हो ? राजा हमारी झोपड़ी ही जलवा देगा ना । अच्छा है कि इस झोंपड़ी की खाक उसके भभूत रमाने के काम आएगी। ज्यादा से ज्यादा वह मुझे उठा ले जाएगा ना ! ले जाए; मुझे ले जाएगा तो क्या करेगा, गुलाम ही तो बनाएगा । मुझसे अपनी गुलामी ही तो करवाएगा। मुझे यह मंजूर है। और तो हमारे पास कुछ है नहीं । सामान के नाम पर ये टूटे-फूटे ठीकरे हैं। ये भी ले जाए तो अच्छा ही है । यदि उसे भी कोई उसके जैसा राजा मिल जाए और उसे राज्य से निष्कासित कर दे तो ये ठीकरे उसके भोजन के काम आएँगे। और क्या ले जाएगा, यह गधा ? ले जाए। उसके बैठने के काम आएगा। ऐसा राजा गधे पर नहीं बैठेगा, तो किस पर बैठेगा ।'
कुम्हारिन की इतनी दृढ़ता और साहस को देखकर कुम्हार अभिभूत हो उठा । वह बोला, ' कुम्हारिन, तुम ठीक कहती हो। हमें अपने द्वार पर आए राजर्षि को नकारना नहीं चाहिए। हम इनके आहार और आश्रय की व्यवस्था अवश्य करेंगे, चाहे इसके बदले हमें सूली पर ही क्यों न चढ़ना पड़े !' तब कुम्हार और कुम्हारिन, संत उदायी से निवेदन करते हैं । 'महाराज, आप हमारी इस झोंपड़ी में पधारें। यह आपको समर्पित है और हमारी यह रूखी-सूखी रोटी स्वीकार करें ।' कुम्हारिन ने कुम्हार को निर्देश दिया कि जब तक महाराज झोंपड़ी के भीतर अपनी आहार
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