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________________ २०५ विवेक : अहिंसा को जीने का गुर ये छोटी-छोटी बातें है जो आपके जीवन में हिंसा और अहिंसा का विवेक निर्धारित करती हैं। कामकोई भी क्यों न हो, विवेकपूर्वक, बोधपूर्वक, मर्यादापूर्वक हो। ऐसा कोई कार्य न हो जिससे स्वयं का या किसी और का अहित हो, अमंगल हो, कष्टकर हो। ___अहिंसा की पालना के लिए ही समिति की ये बातें कही गई हैं। यदि सम्यक् प्रवृत्ति करते हुए भी कभी अतिक्रमण होता लगे आप कृपया तत्काल गुप्ति का उपयोग करें। अपने आप पर अंकुश लगाएँ। यह प्रतिक्रमण कहलाएगा। ___ गलती किसी से भी हो सकती है। गलती करना कोई नहीं चाहता फिर भी हो ही जाती है। आपको जब कभी ऐसा लगे, आप अपनी गलती को स्वीकार करें, उसके लिए खेद प्रकट करें, भविष्य में वैसा न करने का संकल्प ग्रहण करें। यही बोधमूलक जीवन-शैली है। जीवन को जीना एक बहुत बड़ी कला है और यह कला प्राप्त करने के लिए ही इतनी सारी बातें कही गई हैं। धर्म उसका है जो उसे जीवन में जिये। बाकी सब कुछ उन्माद है, नशा है। बोध और होश में ही धर्म है, उदात्त जीवन है, मुक्ति का मार्ग भी इसी से ही प्रशस्त होता है। विवेक से जिएँ, इतना-सा ही सार-संदेश है। 000 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003888
Book TitleJage So Mahavir
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year2012
Total Pages258
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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