________________
जागे सो महावीर
२०२
समान हो । यदि वाणी का उपयोग करना आ जाए तो वाणी किसी संजीवनी औषधि का काम कर जाए। जैसे वैद्य की दवा काम करती है वैसे ही आपकी वाणी भी काम कर सकती है। आप जितने मृदु, मधुर और बेहतर वाणी का उपयोग करेंगे, आप उतने ही लोकप्रिय होंगे। लोगों के दिलों में आपकी जगह बनेगी । कटुवाणी का वक्ता किसी के दिल को आघात ही पहुँचाता है। ऐसा करना सरासर हिंसा है। क्योंकि हिंसा तो हिंसा है ही, किन्तु वाचिक हिंसा भी हिंसा ही है । जब भला वचन आपकी जिह्वा से फूल और अमृत बरसा सकता है तो फिर कैंची क्यों चलाई जाएँ, काँटे क्यों बोए जाए और जहर क्यों उगला जाए ?
हम भाषा समिति का उपयोग करें। वाणी - व्यवहार में समिति, सम्यक् प्रवृत्ति का विवेक रखें। किसी को गाली देकर क्यों तो अपनी जबान गंदी की जाए और क्यों ही किसी और के दिल को दूषित किया जाए ? गाली चाहे दुश्मन को भी क्यों न दी जाए, यह भले आदमी का लक्षण नहीं है। हम क्रोध से, असत्य से, निंदा से, उपहास से बचें। सदा सौम्य रहें, मृदु बोलें। बोलें तो हम मिठास घोलें । कोई और कटु बोल दे तो सह लें। महावीर ने तो कानों में कीलें सहीं, जीसस ने क्रॉस को भी सह लिया तो क्या हम किसी के दो शब्दों को भी नहीं सह सकते ?
भगवान महावीर को संगम देवता ने भीषण कष्ट दिये । एक दिन संगम ने महावीर से पूछा, 'आप मुझे कैसा समझते है ?' महावीर ने कहा, 'अच्छे मुनाफे से माल बिकवाने वाले दलाल के समान उपकारी । ' यानी किसी के द्वारा गलत व्यवहार किये जाने के बावजूद अपनी ओर से शान्त सकारात्मक रवैया अपनाना, यही तो अहिंसा और विवेक है।
ऐसा ही बुद्ध के साथ हुआ। एक ब्राह्मण बुद्ध का शिष्य बना। उसका भाई बुद्ध को गालियाँ देने लगा। बुद्ध शांत रहे । बुद्ध ने इतना ही कहा, 'तुम्हारा माल मेरे यहाँ नहीं खपता ।' गालियों को ग्रहण करने वाला न हो तो गालियाँ आखिर उसी के पास ही लौट कर जाएँगी जिसने अपनी ओर से दी हैं ।
भगवान जीसस को जब सूली पर चढ़ाया गया तब भी उस महापुरुष ने समता, धैर्य और मृदुता रखी । जीसस ने तब प्रार्थना की थी - फॉरगिव देम फादर ! दे डू नॉट नो, ह्वाट दे डू' अर्थात् हे प्रभु ! उन्हें माफ करो क्योंकि वे नहीं जानते कि वे क्या कर रहे हैं ?
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org