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________________ विवेक : अहिंसा को जीने का गुर १९७ सामाजिक जीवन के पहलू हैं। वह यदि किसी चोर को फाँसी की सजा सुनाता है तो यह उसके न्यायाधीश पद के न्याय का परिणाम है और यदि वह राह चलते किसी कुत्ते को कार की चपेट में आने से बचाता है तो यह उसकी दया, करुणा और अहिंसा का परिणाम है। ___ अहिंसा की भी एक सीमा होती है। जैसे एक देश यदि दूसरे देश पर आक्रमण करता है तो उसकी भी सीमा होनी चहिए। भारत तो अहिंसाप्रधान देश है जहाँ अहिंसा पर ही आस्था रखी जाती है। लेकिन जब अन्य देश भारत पर आक्रमण करें तो देश की सुरक्षा व अस्मिता बनाए रखने के लिए जवाब में युद्ध करना ही पड़ता है। यह हिंसा नहीं वरन् अहिंसा का पालन और उसको गौरव प्रदान करना हुआ। कहते हैं कि एक बार बुद्ध अपने शिष्यों के बीच बैठे थे। अचानक एक मक्खी आई और बुद्ध के कंधे पर बैठ गई। उस मक्खी ने इस कदर डंक मारा कि बुद्ध ने उस संवेदना में बड़ी तेजी से हाथ का झपट्टा अपने कंधे पर मारा। मक्खी उड़ गई। अचानक बुद्ध को होश आया और वह अपना हाथ धीरे से कंधे पर उस जगह ले गए जहाँ पर मक्खी बैठी थी। उन्होंने धीरे से उस जगह को सहलाया और हाथ वापस नीचे लेकर आए। उनके शिष्य भी यह सब देख रहे थे। आनन्द से रहा न गया। वह बोला, 'भंते! मैं इस घटना को समझ न पाया। जब मक्खी थी तब तो आपने हाथ से झपट्टा मारा और मक्खी उड़ गई, लेकिन अब जब मक्खी नहीं है तो आपने मक्खी हटाने का यह कैसा उपक्रम किया?' बुद्ध बोले, 'वत्स ! जब मैंने हाथ का बड़ी तेजी से झपट्टा देकर मक्खी को उड़ाया उस समय मैं क्षण भर के लिए अपने होश से स्खलित हो गया था। लेकिन जैसे ही मुझे होश आया, मेरा बोध और विवेक जागा तो मैं अपने हाथ को बड़े धीरे से उठाकर उस जगह तक ले गया और प्यार से सहलाया ताकि फिर ऐसी गलती मुझसे न हो सके। पुनरावृत्ति के दोष से बचने के लिए मैंने ऐसा किया। अब यदि कभी मक्खी बैठे तो मेरा व्यवहार अयतनापूर्ण न हो इसीलिए मैंने यतनापूर्वक मक्खी हटाने का उपक्रम किया। मक्खी का मरना या उड़ जाना महत्व की बात नहीं है, मूल्य है जागरूकता और सजगता का। प्रमाद में ही हिंसा है। अप्रमाद ही अहिंसा की आत्मा है। मूर्छारहित होकर, प्रमाद से उपरत होकर, अप्रमत्त होकर चर्या करना ही अहिंसा Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003888
Book TitleJage So Mahavir
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year2012
Total Pages258
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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