SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 194
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ व्रतों की वास्तविक समझ १८५ गरीब लड़की की शादी में दे आओ। यह मत सोचो कि सामने वाला माँगे, तब मदद करूँगा। तुम अपनी तरफ से पहल करके उसे ये साड़ियाँ आशीर्वाद-स्वरूप उपहार में दे दो। तुम्हें कोई फर्क नहीं पड़ा और गरीब को सहारा मिल गया। इसलिए अपनी तरफ से रोजाना कुछ-न-कुछ सत्कार्य में खर्च करें। आपकी पुण्यवानी थी जो आपने कमाया। अब अपनी तरफ से समाज को भी कुछ समर्पित करें। इससे आपको कई फायदे होंगे। पहला, आपको आत्म-संतोष मिलेगा, दूसरा, आप व्यर्थ के परिग्रह और संचय से बचेंगे और तीसरा आपकी पुण्यवानी और बढ़ेगी। __ भगवान पाँचवें और अंतिम व्रत के सम्बन्ध में कहते हैं, 'वृद्धा, बालिका और युवती स्त्री के इन तीन प्रतिरूपों को देखकर उन्हें माता, पुत्री और बहिन के समान मानना चाहिए तथा स्त्रीकथा से निवृत्त होना चाहिए।' भगवान प्रत्येक व्यक्ति को निर्मल दृष्टि का स्वामी बनाना चाहते हैं। वे कहते हैं कि हर स्त्री किसी की माता, किसी की बहिन या किसी की पुत्री होती है। जब हमें यह अच्छा नहीं लगता कि कोई हमारी माँ, बहिन या बेटी को बुरी नजर से देखे तो औरों को भी तो तब बुरा लगता होगा जब हमारी कुदृष्टि किसी स्त्री पर पड़ती है। पुरुष अधिक बेईमान होते हैं। शीलवान तो नारी ही होती है। एक पुरुष साठ वर्ष की उम्र में भी दूसरा ब्याह कर लेगा, पर किसी स्त्री का पति छः महीने बाद ही मर जाए तो भी वह बिना दूसरी शादी किये अपना गुजारा कर लेगी। स्त्री जैसे-तैसे अपने मन के भावों को नियन्त्रित कर लेगी। स्वयं मेरे पास पुरुष का शरीर है, पर इसके बावजूद मैं कहूँगा कि नारी के पास पुरुष की अपेक्षा कहीं अधिक सतीत्व होता है। नारी जल्दी से किसी पर बुरी नजर नहीं डालेगी, किन्तु पुरुष ऐसा संयम नहीं रख पाएंगे। जरा ईमानदारी से अपने आपको देखें। हालांकि शास्त्रों में कहा गया है कि नारी नरक की खान होती है, पर मैं कभी इस बदसलूकी भरे वाक्य को नहीं कहूँगा। यदि पुरुष नरक में जाता है तो उसका कारण वह स्वयं है। किसी मेनका में वह ताकत नहीं कि वह किसी विश्वामित्र को विचलित कर सके। यदि कोई विश्वामित्र गिरता है तो वह अपनी ही कमजोरी से, अपने मन में रहने वाले बुरे भावों और आसक्ति से। तभी तो किसी भी धर्म के शास्त्र में यह बात नहीं कही गई कि नारी पुरुष पर बुरी नजर न डाले क्योंकि शास्त्र रचने वाले इस बात को भली Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003888
Book TitleJage So Mahavir
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year2012
Total Pages258
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy