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________________ व्रतों की वास्तविक समझ १७५ सव्वेसिमासमाणं, हिदयं गब्भो व सव्वसत्थाणं। सव्वेसिं वदगुणाणं, पिंडो सारो अहिंसाहु॥ भगवान कहते हैं, 'अहिंसा सब आश्रमों का हृदय, सब शास्त्रों का रहस्य तथा सब व्रतों और गुणों का पिण्डभूत सार है।' __ भगवान ने प्रथम मार्ग को स्थापित करते हुए कहा कि अहिंसा सब आश्रमों का हृदय है। चाहे ब्रह्मचर्य आश्रम हो या गृहस्थ, चाहे वानप्रस्थ आश्रम हो या संन्यास, सभी आश्रमों का हृदय, नवनीत या बैकुण्ठ-धाम अहिंसाश्रम ही है। व्यक्ति किसी भी आश्रम में रहे, पर अहिंसा उसकी हर साँस से जुड़ी हो, परछाँई की तरह। ___ अहिंसा महावीर की आत्मा है। विश्व की अनेकानेक समस्याओं का समाधान महावीर ने अहिंसा में तलाशा है। हिंसा समस्या है। अहिंसा समाधान है। केवल स्वार्थ को मूल्य देना हिंसा का आधार है। दूसरों के भी जीवन को मूल्य देना अहिंसा का आधार है। अपना हित स्वार्थ है। सबका हित परमार्थ है। हिंसाअहिंसा के पीछे यही मूलभूत दृष्टिकोण है। ____ अहिंसा का अर्थ है हिंसा नहीं करना। व्यक्ति मन,वचन और काया द्वारा हिंसा करता है। मन द्वारा प्रतिपादित हिंसा मानसिक हिंसा, वचन से की जाने वाली हिंसा वाचिक हिंसा और शरीर द्वारा की जाने वाली हिंसा कायिक हिंसा है। तीनों ही प्रकार की हिंसा व्यक्ति की अवनति का कारण बनती है, उसकी प्रगति में बाधक बनती है। आपने किसी को चाँटा मारा तो यह हिंसा है, किसी को गाली दी तो यह भी हिंसा है और किसी के लिए बुरा सोचा तो यह भी हिंसा है। तीनों में प्रकट और अप्रकट का ही फर्क है। सावधान ! यदि आज आप किसी के बारे में बुरा सोचते हैं तो कल यही सोच बुरा करने का आधार बन जाएगा। आखिर पेड़ तो वैसा ही लहराएगा, जैसा कि बीज बोया गया है । हम अपनी सोच के द्वारा मन के खेत में बीज ही तो बोते हैं । अच्छा सोचोगे तो अच्छी फसल लहराएगी और बुरा सोचकर बुरे बीज-वपन किए तो फसल भी वैसी ही प्राप्त होगी। ___ जो व्यक्ति यह चाहते हैं कि उनके द्वारा भविष्य में कभी भी गलत कृत्य न हों तो वे अपनी सोच के प्रति सावधान और जागरूक रहें। यदि आज आपने किसी व्यक्ति के बारे में यह सोचा कि इसको तो मैं सबक सिखाकर ही रहूँगा और रात को यही सोचते-सोचते सो गए तो यह बात सपने में आ जाएगी, कल यह बात मुँह Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003888
Book TitleJage So Mahavir
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year2012
Total Pages258
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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