________________
१७०
जागे सो महावीर
मेरी प्रेरणा है कि हर व्यक्ति गृहस्थ-संत बने। घर में रहे, फिर भी साधुस्वभावी होकर। साधुता मन में हो, व्यवहार में हो। हर किसी का हृदय साधु होना चाहिए। मैं नाम, वेश, स्थान बदलने की बात नही उठाऊँगा। मैं तो कहूँगा कि तुम पैंट-कमीज पहनकर भी संत बनो। पैंट-कमीज वाले ही सही, पर जीवन संत हो। स्वार्थों का त्याग हो। विकारों का त्याग हो। औरों के काम आने की सद्भावना हो। हमारी ओर से किसी को भी ठेस न पहुँचे। सबसे प्रेम हो और सबकी सेवा।
महावीर का लंछन है-सिंह। लॉयन्स क्लब का चिह्न है सिंह। मैं कहूँगा कि हम सब सिंह बनें, सिंह-पुरुष। अपना सोया सिंहत्व जगाएँ, अपनी सोई साधुता जगाएँ। महाव्रत अब कौन-कितना पाल सकेगा, यह अलग बात है। हम अणुव्रत ही पालें, पर पूरा जिएँ। चाहे श्रमण हों या श्रावक, वे अपनी परिपूर्णता के साथ अणुव्रत भी जीएँ तो इस स्वार्थी और चकाचौंधमयी दुनिया में काफी होगा। जो हो, पूर्ण हो; निष्ठा से हो। हर हाल में हो। धक्कामार जिंदगी ठोस हो, पूर्ण हो, परिपक्व हो। हम सब सात्विक जीवन जिएँ। अपनी ओर से इतना ही अनुरोध है। सभी के लिए अमृत प्रेम; नमस्कार।
000
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org